8.3.22

अर्च्य आचार्य श्री ओम शंकर जी का आज दिनांक 08/03/2022 का सदाचार संप्रेषण

 प्रस्तुत है अर्च्य आचार्य श्री ओम शंकर जी का आज दिनांक 08/03/2022

  का  सदाचार संप्रेषण 




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आचार्य जी ने उ प्र चुनाव के शीघ्र आने वाले परिणाम के लिये बन रही उत्सुकता की चर्चा की


गीता कहती है कि बहुत अधिक लगाव कहीं से नहीं रखना चाहिये लेकिन इस संसार का सत्य यही है कि होता कुछ और है

लेकिन एक बात जरूर है कि कुछ मनस्वी जन जो इसके तथ्यों और तत्त्व को पा लेते हैं वो भाग्यशाली हैं


भैया अनुपम त्रिवेदी जी( बैच 1982) के पूज्य पिता जी कल इस असार संसार को त्याग कर स्वर्गगमन कर गए ।

एक लम्बे समय से वह वृंदावन में निवास कर रहे थे


जितना अधिक परिचय होता है तो एक ओर तो इस कारण उतनी ही व्यथाएं, उलझनें, समस्याएं होती हैं और दूसरी ओर  आनन्द की उतनी ही अनुभूति भी होती है


इसी तरह अर्जुन का भी परिचय था

 युद्ध में भीष्म पितामह और द्रोणाचार्य दोनों सामने खड़े हैं जब कि अर्जुन दोनों का दुलारा था


एवमुक्त्वा हृषीकेशं गुडाकेशः परन्तप।

न योत्स्य इति गोविन्दमुक्त्वा तूष्णीं बभूव ह ॥9॥


यहां अर्जुन को गुडाकेश कहा गया है गुडा अर्थात् निद्रा

गुडाकेश अर्थात् जिसने नींद पर भी विजय प्राप्त कर ली हो


जो नींद पर विजय प्राप्त कर सकता है उसके लिए अवसादों पर विजय पाना बायें हाथ का खेल है


वो अर्जुन कहता है हे गोविंद, 'मैं युद्ध नहीं करूंगा," और चुप हो गया।


तमुवाच हृषीकेशः प्रहसन्निव भारत।


सेनयोरुभयोर्मध्ये विषीदन्तमिदं वचः।।2.10।।


दोनों सेनाओं के मध्य  शोकमग्न अर्जुन को भगवान्  ने हँसकर ये कहा


अशोच्यानन्वशोचस्त्वं प्रज्ञावादांश्च भाषसे।


गतासूनगतासूंश्च नानुशोचन्ति पण्डिताः।।2.11।।


जिनके लिये शोक करना उचित नहीं है उनके लिये तुम शोक करते हो लेकिन ज्ञानियों जैसी बात करते हो , ज्ञानी पुरुष मृत  और जीवित दोनों के लिये शोक नहीं करते हैं।


न त्वेवाहं जातु नासं न त्वं नेमे जनाधिपाः।


न चैव न भविष्यामः सर्वे वयमतः परम्।।2.12।।

रूप बदल बदल कर आते हैं


देहिनोऽस्मिन्यथा देहे कौमारं यौवनं जरा।


तथा देहान्तरप्राप्तिर्धीरस्तत्र न मुह्यति।।2.13।।



हमें ऋषि के सही अर्थ को जानना चाहिये ऋषियों ने एक से एक बढ़कर अनुसंधान किये हैं


परिभाषेन्दुशेखरः पुस्तक में व्याकरण शास्त्र के गम्भीर शब्दों की व्याख्या है


विष्णुधर्मोत्तर पुराण के अनुसार 'सूत्र' की निम्नलिखित परिभाषा  है-


अल्पाक्षरं असंदिग्धं सारवत्‌ विश्वतोमुखम्‌।

अस्तोभं अनवद्यं च सूत्रं सूत्र विदो विदुः॥

(अर्थात् अल्प अक्षरों वाला, संदेहरहित, सारस्वरूप, निरन्तरता धारण किये और त्रुटि रहित कथन को  सूत्र कहते हैं।)


अपने यहां बहुत से सूत्र हैं


ब्रह्मसूत्र

योगसूत्र

न्यायसूत्र

वैशेषिक सूत्र

पूर्व मीमांसा सूत्र

माहेश्वर सूत्र

वास्तुसूत्र

भगवती सू‍त्र

कात्यायन श्रौतसूत्र

शांखायन श्रौतसूत्र

आपस्तम्ब श्रौतसूत्र 

विष्णु धर्मसूत्र

वैखानस धर्मसूत्र

हिरण्यकेशी श्रौतसूत्र

वाराह श्रौतसूत्र 

आश्वलायन श्रौतसूत्र

बौधायन धर्मसूत्र

भारद्वाज श्रौतसूत्र

वैतान श्रौतसूत्र

वासिष्ठ धर्मसूत्र

जैमिनीय श्रौतसूत्र

लाट्यायन श्रौतसूत्र

गौतम धर्मसूत्र

धर्मसूत्र

द्राह्यायण श्रौतसूत्र 

क्षुद्र कल्पसूत्र

वाधूल श्रौतसूत्र

बौधायन श्रौतसूत्र 

हिरण्यकेशि धर्मसूत्र

आर्षेय कल्पसूत्र

मानव श्रौतसूत्र

कल्पसूत्र 

हारीत धर्मसूत्र

दाल्भ्य सूत्र

देवल सूत्र

धन्वन्तरि सूत्र


किसी प्रसिद्ध सूत्रग्रन्थ की व्याख्या को भाष्य कहते हैं। किन्तु भाष्यग्रन्थ मूलग्रन्थ भी हो सकता है। आदि शंकराचार्य का ब्रह्मसूत्र पर लिखा भाष्य प्रसिद्ध है।


भामती एक ग्रंथ है, जो  शंकराचार्य के 'ब्रह्मसूत्र' के भाष्य की  टीका है। 

इसके रचयिता  वाचस्पति मिश्र (नवीं शताब्दी) थे 

भामती 'अद्वैतवाद' का  प्रमाणिक ग्रन्थ है।


ब्रह्मसूत्र से परिमल तक की अद्भुत व्याख्याएं हैं


इतने विशाल भण्डार को हम अनदेखा करते हैं

वेद की नासिका शिक्षा की हमें चिन्ता नहीं है हम इस ओर ध्यान दें चिन्तन करें


भ्रम भय निराशा स्वयं पर अविश्वास से दूर रहें