प्रस्तुत है धृतिमत् आचार्य श्री ओम शंकर जी का आज दिनांक 10/03/2022
का सदाचार संप्रेषण
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भारतवर्ष की भूमि का भाव अद्भुत है हम भावुक जन तो रूस -यूक्रेन युद्ध से भी व्यथित हो जाते हैं
इसी भावनासंपन्नता के कारण हमारे परिवार कुटुम्ब बहुत गहरी जड़ों से उद्भूत हुए हैं
यही भावना शक्ति काव्य, कथा, चिन्तन में व्यक्त होने लगती है इसी भाव के परिणामस्वरूप ही तमसा तट पर आदिकवि की करुणा जाग उठी और उनके मुख से व्यथा का स्वर निकल गया जो संस्कृत भाषा का प्रथम श्लोक बना
मा निषाद प्रतिष्ठां त्वंगमः शाश्वतीः समाः।
यत्क्रौंचमिथुनादेकं वधीः काममोहितम्॥
सुमित्रानन्दन पन्त कहते हैं
वियोगी होगा पहला कवि, आह से उपजा होगा गान। उमड़कर नयनों से चुपचाप, बही होगी कविता अनजान..।'
मनुष्य का जीवन भावनाओं के सागर में तैरता रहता है
जो भरा नहीं है भावों से
बहती जिसमें रसधार नहीं
वह हृदय नहीं है पत्थर है
जिसमें स्वदेश का प्यार नहीं
( ये काव्य पंक्तियां गया प्रसाद शुक्ल सनेही जी ने ’स्वदेश’ नामक समाचारपत्र के लिए लिखी थीं )
भाव से संयुत कई विषय हैं चुनाव के आज घोषित होने वाले परिणाम
भारत मां की कटी भुजाएं तो बहुत लम्बे समय से पीड़ा पहुंचा रही हैं
आदि
यही भावनाओं का धन भक्ति और शक्ति बनता है इन्हीं भावनाओं के आधार पर जब विचार पल्लवित होते हैं तो वेद की उत्पत्ति होती है
सृष्टि क्या है सत्य क्या है उद्भव पालन प्रलय की कहानी क्या है इन सारी जिज्ञासाओं के शमन के लिये मनुष्य में ज्ञान उत्पन्न होता है
कभी हम विश्लेषणात्मक हो जाते हैं कभी रचनात्मक
आचार्य जी ने परामर्श दिया कि सदाचार वेला को ध्यान से सुनें और प्रश्न भी करें अपनी दृष्टि निर्मल रखें अपनी बुराइयों की समीक्षा करें आत्मविश्लेषण करें
किसी भी अनुसंधान में भावना पक्ष के संयुत होने से इधर उधर का ध्यान नहीं रहता
रम जाना ही भक्ति है भक्ति में शक्ति है
किसी संस्था को चलाने का मनोविज्ञान क्या है आदि जानने के लिये सुनें