12.3.22

आचार्य श्री ओम शंकर जी का आज दिनांक 12/03/2022 का सदाचार संप्रेषण

 उत्साहसंपन्नमदीर्घसूत्रं   क्रियाविधिज्ञं  व्यसनेश्वसक्तम्  |

शूरं  कृतज्ञं  दृढ  सौहृदं  च  लक्ष्मी  स्वयं याति निवासहेतोः ||



प्रस्तुत है परिरक्षक आचार्य श्री ओम शंकर जी का आज दिनांक 12/03/2022

  का  सदाचार संप्रेषण 




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समाज और देश हित के किसी भी बड़े काम को करने के लिये सांगठनिक शक्ति अनिवार्य है क्योंकि यह कलयुग है इसलिये व्यक्ति की शक्ति की अपेक्षा संघ की शक्ति अपार होती है


हमें ऐसे संगठन में विश्वास करना चाहिये जहां हमारे मन मिलते हों


लगभग पंद्रह दिनों तक संघर्ष करने के बाद भैया राजेश मेहरोत्रा  जी (१९८५ बैच) ( आर्य नगर स्वरूप नगर व्यापार मंडल के  प्रचार मंत्री  ) कल हमारे बीच नहीं रहे

इस तरह की सूचनाओं से मन    बहुत खराब हो जाता है

मन भी बहुत विचित्र होता है


मन मन भर का जब हो जाता

उत्साह गाथ का खो जाता


इस कारण हमें गीता /मानस का सहारा लेना चाहिये


शाश्वत वाणी और लौकिक वाणी में अन्तर स्पष्ट करते हुए आचार्य जी ने


ऊर्ध्वमूलमधःशाखमश्वत्थं प्राहुरव्ययम्।


छन्दांसि यस्य पर्णानि यस्तं वेद स वेदवित्।।15.1।।


की व्याख्या की


वैदिक भाषा और लौकिक भाषा में अन्तर है सरल से कठिन की ओर जाना बहुत मुश्किल है


ऋषित्व तक बिना पहुंचे ऋषित्व की अनुभूति करना  बहुत कठिन है


गीता के सार को समझना सबके वश में नहीं है तिलक जी ने इसे समझकर गीता रहस्य विस्तार से लिख दिया


हम भी अपना मार्ग खोजें कदम तेज हों या धीमे उस ओर अवश्य बढ़ायें 

उद्देश्य लेकर चलना हमारा काम है

अपनी दिनचर्या को समाजोन्मुखी बनाकर जीवन आनन्दपूर्ण हो जाता है


आचार्य जी ने यह भी स्पष्ट किया कि भक्ति अकर्मण्यता नहीं है

किसी भी कार्य में तल्लीन हो जाना अद्भुत परिणाम देता है

आत्मस्थ होने का अभ्यास करें तो जीवन मङ्गलमय बनता है

समाज हमें जाने इसका प्रयास करें

समाज में फैले भ्रम को दूर करें