तुलसी यह तनु खेत है मन बच कर्म किसान ।
पाप-पुन्य द्वै बीज हैं बवै सो लवै निदान ॥ ५॥
प्रस्तुत है प्रजागर आचार्य श्री ओम शंकर जी का आज दिनांक 15/03/2022
का सदाचार संप्रेषण
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यद्यपि मां सरस्वती वाणी सभी को देती हैं लेकिन वाणी का विधि- विधान सभी को प्राप्त नहीं होता है इसी कारण एक ओर तो किसी किसी की वाणी इयत्ताशून्य प्रभाव छोड़ती है तो दूसरी ओर उसकी वाणी सुनी भी नहीं जाती
इस अजूबे शबल /शवल संसार में रहते हुए हमें संसार के सत्य का अनुसंधान करना चाहिये
सोइ जानइ जेहि देहु जनाई। जानत तुम्हहि तुम्हइ होइ जाई।।
तुम्हरिहि कृपाँ तुम्हहि रघुनंदन। जानहिं भगत भगत उर चंदन।।
इस भौतिक भंवर में मनुष्य अपने कर्तव्य के प्रति सदा असंतुष्ट रहते हुए डूबता तिरता अपने को संसार में सर्वाधिक दुःखी सिद्ध करते हुए आरोप प्रत्यारोप दूसरों पर मढ़ता रहता है
संसार की यह अद्भुत लीला है लेकिन कुछ क्षणों के लिये यह समझ में आ जाता है कि परमार्थ ही हमारा कर्तव्य है और जो करता है वह परमात्मा ही करता है तो यह अत्यन्त आनन्दप्रद होता है
तुलसी ऐसे कहुँ कहूँ धन्य धरनि वह संत ।
परकाजे परमारथी प्रीति लिये निबहंत ॥ १०॥
परमार्थ में जुटे मनुष्य निष्क्रिय नहीं बैठते
की मुख पट दीन्हें रहें, जथा अर्थ भाषंत,
तुलसी या संसार में, सो विचारजुत संत [११]
वे चुप रहेंगे या यथार्थ बोलेंगे
हम लोगों के विचारों पर एक ऐसा जाल है कि हम लोग सोचते कुछ हैं और बोलते कुछ हैं
आचार्य जी कहते हैं हममें से जो लोग पदों पर स्थित हैं या अन्य प्रकार से योग्य हैं उन्हें अपना अपना प्रभाव प्रदर्शित करना चाहिये
गांवों की दशा बहुत खराब है वहां ध्यान दें
वृद्धावस्था में शरीर बोझिल हो जाता है लेकिन उसका बोझ महसूस न हो यह परमात्मा से प्रार्थना करनी चाहिये
मनुष्य के रूप में मिली यह सौगात व्यर्थ न जाये इसके लिये हमें अपनी बुद्धि शक्ति विचार व्यवहार का सदुपयोग करना चाहिये
अध्ययन स्वाध्याय चिन्तन मनन विचार सब भारत मां के चरणों में अर्पित करें
यही सदाचार का सार है
इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने भैया संतोष जी का नाम क्यों लिया नरौंहां क्या है आदि जानने के लिये सुनें 👇