आचारवान् सदा पूत: सदैवाचारवान् सुखी
आचारवान् सदा धन्य: सत्यं सत्यं च नारद।।
प्रस्तुत है राष्ट्रोज्झक आचार्य श्री ओम शंकर जी का आज दिनांक 18/03/2022
का सदाचार संप्रेषण
https://sadachar.yugbharti.in
https://t.me/prav353
आज होलिकोत्सव है हमारे यहां के त्यौहारों के मूल में कोई न कोई कथा होती है मनुष्य भी कथा का आधार लेकर अपना जीवन चलाता है और अपने जीवन के साथ पूरी सृष्टि को समाहित कर लेता है
यह आत्मानुभूति हिन्दू जीवन की विशेषता है
हम अणु आत्मा को जाग्रत होने की आवश्यकता है
हिन्दू क्या है हिन्दुत्व क्या है इस पर लेख लिखा जा सकता है विचार गोष्ठी आयोजित की जा सकती है
आचार्य जी ने आगम, निगम, इष्ट, पूर्त, आचार्य के अर्थ बताये
हमारे यहां की परम्परा गहन विचार करने योग्य है
वशिष्ठ स्मृति में
आचारहीनं न पुनन्ति वेदा यद्यप्यधीता: सह षड्भिरंगै:। छन्दांस्येनं मृत्युकाले त्यजन्ति नीडं शकुंता इव जातपक्षा: ll
छह अंग वाले वेद भी आचारहीन मनुष्य को पवित्र नहीं करते। मृत्युकाल में आचारहीन मनुष्य को वेद वैसे ही त्याग देते हैं जैसे पंख उगने पर पक्षी अपने घोंसले को त्याग देता है
संस्कार में यह बहुत आवश्यक है कि हम सचेत सक्रिय होने के साथ साथ कठोर भी हों इसके लिये आचार्य जी ने बैरिस्टर साहब का उदाहरण दिया
आचार्य जी ने यह भी बताया कि भगवान् राम और कृष्ण हमारे आदर्श क्यों हैं
सत्पुरुषों को संगठित होने की अत्यन्त आवश्यकता है ताकि उनकी ओर कोई आंख उठाने की हिम्मत न कर सके