19.3.22

आचार्य श्री ओम शंकर जी का आज दिनांक 19/03/2022 का सदाचार संप्रेषण

 प्रस्तुत है वेदि आचार्य श्री ओम शंकर जी का आज दिनांक 19/03/2022

  का  सदाचार संप्रेषण 




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अध्यात्म में एक अद्भुत प्रक्रिया है कि मनुष्य स्वयं बोले और स्वयं सुने इसके अतिरिक्त मौन का श्रवण, चिन्तन का विस्तार भी अद्भुत पक्ष हैं

होली में एक प्रथा है जिसमें वर्ष -फल सुनाया जाता है

इसी पर आधारित एक कार्यक्रम कल हम लोगों के गांव सरौंहां में हुआ 

इस समय राक्षस संवत्सर चल रहा है

2 अप्रैल से ‘नल’ नामक संवत्सर का आरंभ होगा।

इस साल के राजा शनि महाराज होंगे क्योंकि साल का आरंभ शनि के दिन से हो रहा है।


सूक्ष्म से विस्तार तक, व्यक्ति से समाज तक, तत्त्व से तथ्य तक मनुष्य के जीवन का अद्भुत विस्तार है

गीता में

ऊर्ध्वमूलमधःशाखमश्वत्थं प्राहुरव्ययम्।


छन्दांसि यस्य पर्णानि यस्तं वेद स वेदवित्।।15.1।।


कबीर कहते हैं

सुखिया सब संसार है, खाए अरु सोवै। 


दुखिया दास कबीर है, जागै अरु रोवै॥


रंगी को नारंगी कहे , नगद माल को खोया


चलती को गाड़ी कहे , देख कबीरा रोया ।


(फिल्म जागते रहो के गाने जिन्दगी ख्वाब है का प्रारम्भ रंगी को नारंगी कहे, बने दूध को खोया

चलती को गाड़ी कहे, देख कबीरा रोया से है)



गीता में ही


न रूपमस्येह तथोपलभ्यते


नान्तो न चादिर्न च संप्रतिष्ठा।


अश्वत्थमेनं सुविरूढमूल


मसङ्गशस्त्रेण दृढेन छित्त्वा।।15.3।।

ततः पदं तत्परिमार्गितव्य


यस्मिन्गता न निवर्तन्ति भूयः।


तमेव चाद्यं पुरुषं प्रपद्ये


यतः प्रवृत्तिः प्रसृता पुराणी।।15.4।।


इस संसारवृक्ष का जिस तरह का रूप दिखता है, वैसा यहाँ  मिलता नहीं, कारण है इसका न आदि है न अन्त है और न स्थिति ही है।

अतः इस दृढ़ मूलों वाले वृक्ष को दृढ़  शस्त्र के द्वारा काटकर 

उसके बाद परमात्मा की खोज करनी चाहिये जिसको पाने पर मनुष्य फिर लौटकर  नहीं आते और जिससे अनादिकाल से चल रही यह सृष्टि विस्तार को प्राप्त हुई  है, उस आदिपुरुष परमात्मा की मैं शरण हूँ।


निर्मानमोहा जितसङ्गदोषा


अध्यात्मनित्या विनिवृत्तकामाः।


द्वन्द्वैर्विमुक्ताः सुखदुःखसंज्ञै


र्गच्छन्त्यमूढाः पदमव्ययं तत्।।15.5।।


ये बहुत प्रबोधित करने वाले छन्द हैं

ये शक्ति के स्वर मन को उत्साह देते हैं  हमें आत्मविश्वासी बनना है

स्वाध्याय ध्यान संगठन शक्ति संचय की आवश्यकता है


समाज के लिये राष्ट्र के चैतन्य के लिये समय निकालें


समस्या का समाधान स्वयं खोजें


युवा बाल वृद्ध से बात करते समय तत्त्व निकालें


जिस काम को करें उसमें व्यवस्थाएं बांट लें समय का ध्यान दें परिणाम का भी ध्यान दें कर्म संन्यास में लगें

विश्वास की अत्यन्त आवश्यकता है


गीता की पृष्ठभूमि को देखें वह बैठने के लिये कतई नहीं है