प्रस्तुत है दृशान आचार्य श्री ओम शंकर जी का आज दिनांक 22/03/2022
का सदाचार संप्रेषण
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आचार्य जी ने अध्ययन और वाचन में अन्तर स्पष्ट करते हुए बताया कि कोई भी विषय जो अपने भावों का संस्पर्श कर दे तो वह शक्ति का प्राकट्य है
हम सभी लोग शान्ति खोजते हैं दैहिक दैविक भौतिक तीनों ताप शान्त हो इसके लिये उपाय पूछते हैं उपाय ऐसा जो छोटा हो (SHORTCUT )
नित्य की इस सदाचार वेला के माध्यम से आचार्य जी हमें अज्ञानता के अंधकार से निकालकर ज्ञान के प्रकाश में ले जाने वाली अपनी अमृतवाणी से अभिसिंचित तो करते हैं लेकिन हमारा भी कर्तव्य है कि हम उसका अधिक से अधिक लाभ उठाएं
गीता के 17वें अध्याय का हम लोग अध्ययन करें
अर्जुन उवाच
ये शास्त्रविधिमुत्सृज्य यजन्ते श्रद्धयाऽन्विताः।
तेषां निष्ठा तु का कृष्ण सत्त्वमाहो रजस्तमः।।17.1।।
अर्जुन बोले -- हे कृष्ण ! जो भक्त शास्त्र-विधि त्याग कर श्रद्धापूर्वक देवता आदि को पूजते हैं तो उनकी निष्ठा सात्त्विकी है या राजसी या तामसी?
इस अध्याय में शरीर का तप, मन का तप आदि का विस्तार से वर्णन है
जैसे
यातयामं गतरसं पूति पर्युषितं च यत्।
उच्छिष्टमपि चामेध्यं भोजनं तामसप्रियम्।।17.10।।
आधा पका , रसविहीन , दुर्गन्ध वाला , बासी, उच्छिष्ट तथा अपवित्र अन्न तामसी लोगों को प्रिय होता है।।
आचार्य जी हमें अध्ययन स्वाध्याय चिन्तन मनन ध्यान शौर्य शक्ति के लिए प्रेरित करते हैं और चाहते हैं कि हम लोग भारत मां की सेवा में रत हों