प्रस्तुत है
श्लक्ष्ण आचार्य श्री ओम शंकर जी का आज दिनांक 26/03/2022
का सदाचार संप्रेषण
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हम युगभारती के सदस्यों को अपने संपर्कों पर ध्यान देना चाहिये ताकि कोई भी विषय जल्दी पता चल जाए
संवेदनाओं का संचरण सत्पुरुषों में सहज भाव से नित्य जितना संचरित होता रहता है समाज उतना ही परिपुष्ट होता है
समाज का परिपोषण संवेदनाओं के संचरण और उनके संग्रहण पर आधारित है इससे समाज सुव्यवस्थित और मजबूत रहता है,संवेदनाएं यदि केन्द्रित हैं तो व्यक्ति व्यग्र होने लगता है ब्राह्मी स्थिति है तब तो बात अलग है,यह तत्त्व की बात है
क्योंकि युग -भारती एक परिवारभाव से चलने वाली संस्था है इसलिये संवेदनाएं प्रभावी ढंग से संचरित होनी चाहिये
हमें जाग्रत संप्रेषण पर ध्यान देना चाहिये हमारे अपने ज्ञानवान तत्त्वदर्शी ब्राह्मी भाव में रहने वाले संपूर्ण विश्व को कुटुम्ब समझने वाले समाज से भी यही जाग्रत संप्रेषण विलुप्त हो गया
जिसके कारण वो भौतिक राक्षसी शक्तियों से परेशान हो गया
समाज के चिन्तन में हम लोगों को बहुत अधिक जागरूक रहना चाहिये
नित्य का यह सदाचार संप्रेषण बहुत आवश्यक है ताकि हम भौतिकता में पस्त न हों और हमारी कमजोरी में अभिवृद्धि न हो
इसीलिये हमारे यहां यज्ञमयी संस्कृति को बहुत महत्त्व दिया गया है
यज्ञशिष्टाशिनः सन्तो मुच्यन्ते सर्वकिल्बिषैः।
भुञ्जते ते त्वघं पापा ये पचन्त्यात्मकारणात्।।3.13।।
यज्ञ के बचे अन्न को खाने वाले पुरुष सब तरह के पापों से मुक्त हो जाते हैं लेकिन जो लोग स्वयं के लिये ही पकाते हैं वे तो पापों को ही खाते हैं।
अन्नाद्भवन्ति भूतानि पर्जन्यादन्नसम्भवः।
यज्ञाद्भवति पर्जन्यो यज्ञः कर्मसमुद्भवः।।3.14।।
समस्त प्राणी अन्न से उत्पन्न होते हैं अन्न की उत्पत्ति बादल से, बादल की उत्पत्ति यज्ञ से और यज्ञ कर्मों से उत्पन्न होता है।
व्यक्ति व्यक्ति को व्यक्तिधर्म परिवारधर्म समाजधर्म राष्ट्रधर्म विश्वधर्म पर चिन्तन करना चाहिये
संवेदनशील बनते हुए हम लोग एक दूसरे से संयुत रहें इसका प्रयास करते रहें
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