क्लैब्यं मा स्म गमः पार्थ नैतत्त्वय्युपपद्यते।
क्षुद्रं हृदयदौर्बल्यं त्यक्त्वोत्तिष्ठ परन्तप।।2.3।।
प्रस्तुत है सम्भृतश्रुत आचार्य श्री ओम शंकर जी का आज दिनांक 27/03/2022
का सदाचार संप्रेषण
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गीता के तृतीय अध्याय में
सहयज्ञाः प्रजाः सृष्ट्वा पुरोवाच प्रजापतिः।
अनेन प्रसविष्यध्वमेष वोऽस्त्विष्टकामधुक्।।3.10।।
भगवान् ने सृष्टि के प्रारम्भ में यज्ञ सहित प्रजा का निर्माण कर कहा इस यज्ञ द्वारा तुम वृद्धि को प्राप्त हो और यह यज्ञ तुम्हारे लिये इच्छित कामनाओं को पूरा करने वाला बने l
इसी छंद के अर्थ को विस्तार दिया जा सकता है अन्य छन्दों को भी विस्तार दिया जा सकता है जो चिन्तन, विचार, विवेचन और परस्पर के संवाद से संभव है
जब हम अपने भीतर ही चिन्तनोन्मुख विचारोन्मुख हो जाते हैं तो हमारे अन्दर ही संवाद चलने लगते हैं
यह अध्यात्म की एक दुरूह अवस्था है हम स्वयं ही अपने सलाहकार हो जाते हैं और कुछ कर गुजरने के लिये उद्यत हो जाते हैं
भगवान् सर्वशक्तिमान है इसलिये उसके अंश होने पर हम भी आंशिक रूप से शक्तिमान हैं सीमित क्षमता होने पर हम बद्ध जीव कहे जाते हैं
आचार्य जी ने दीनदयाल शोध संस्थान द्वारा आयोजित की जाने वाली वैश्विक संगोष्ठी की चर्चा की l संस्थान से एक आमन्त्रण मिला है कि हम लोगों में से चार लोग अपने विचार उस संगोष्ठी में रखें इस तरह के अवसर से हमारे आत्म को विस्तार मिलता है