सङ्गच्छध्वं संवदध्वं सं वो मनांसि जानताम्।
देवा भागं यथा पूर्वे सञ्जानाना उपासते।।
हम सब एक साथ चलें, एक साथ बोलें,हमारे मन भी एक हों। प्राचीन काल में देवताओं का आचरण इसी तरह का रहा इसी कारण वे वंदनीय हैं।
समानो मन्त्र: समिति: समानी समानं मन: सहचित्तमेषाम्
समानं मन्त्रमभिमन्त्रये व: समानेन वो हविषा जुहोमि ||
प्रस्तुत है कुलध्वज आचार्य श्री ओम शंकर जी का आज दिनांक 29/03/2022
का सदाचार संप्रेषण
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https://youtu.be/YzZRHAHbK1w
आचार्य जी को गर्व है कि युगभारती परिवार सद्गुणों का ढेर है समय समय हम लोगों की भावाभिव्यक्तियां आचार्य जी को संतुष्ट करती रहती हैं लेकिन फिर भी
इस समय परिस्थितियां विषम हैं इसलिये हमें संगठित होने की आवश्यकता है यदि हम वर्तमान को संभाल लेते हैं तो भविष्य उज्ज्वल होने ही वाला है
हमें संतुष्ट होकर बैठने की आवश्यकता नहीं है संतुष्टि से शैथिल्य आता है
आचार्य जी ने कवि रहीम की चर्चा की साथ ही उनकी रचित गङ्गाष्टकम् की चर्चा की
भारत की धरती अद्भुत है जो असंख्य दोषों को अपने में समाहित कर तत्त्व विकसित कर देती है हम लोग इस बात पर भी ध्यान दें कि श्रीमद्भागवत् के अनुसार बाइस जातियां बाहर से आकर यहीं रच बस गईं और हिंदू हो गईं l इस समय हमारा कर्तव्य है कि हम समाज को जाग्रत करें और इसके लिये आपस में मतभेद न रखें
टूटे सुजन मनाइए, जौ टूटे सौ बार।
रहिमन फिरि फिरि पोहिए, टूटे मुक्ताहार॥