30.3.22

आचार्य श्री ओम शंकर जी का आज दिनांक 30/03/2022 का सदाचार संप्रेषण

 प्रस्तुत है तुल्यदर्शन आचार्य श्री ओम शंकर जी का आज दिनांक 30/03/2022

  का  सदाचार संप्रेषण 




https://sadachar.yugbharti.in/


https://youtu.be/YzZRHAHbK1w



यदि हमें यह समझ में आ जाये कि हमारा कर्म क्या है तो हम अपनी उथल -पुथलों को शांत कर लेते हैं हम सहारा  नहीं खोजते

यही भगवान् श्रीकृष्ण अर्जुन को समझाते हैं


स्वे स्वे कर्मण्यभिरतः संसिद्धिं लभते नरः।


स्वकर्मनिरतः सिद्धिं यथा विन्दति तच्छृणु।।18.45।।


अपने-अपने स्वाभाविक कर्म में लगा हुआ मानव संसिद्धि को पा लेता है। अपने कर्म में लगा मानव किस प्रकार सिद्धि प्राप्त करता है, उसे तुम सुन लो l


यतः प्रवृत्तिर्भूतानां येन सर्वमिदं ततम्।


स्वकर्मणा तमभ्यर्च्य सिद्धिं विन्दति मानवः।।18.46।।




जिस ईश्वर से भूतमात्र की उत्पत्ति हुई है और जिससे यह पूरा संसार व्याप्त है, उस ईश्वर की अपने कर्म द्वारा पूजा करके मानव सिद्धि को पाता है


स्व समझने में कभी कभी पूरा जीवन व्यतीत हो जाता है स्व तब भी समझ में नहीं आता 

श्रेयान्स्वधर्मो विगुणः परधर्मात्स्वनुष्ठितात्।


स्वभावनियतं कर्म कुर्वन्नाप्नोति किल्बिषम्।।18.47।।


आचार्य जी ने स्वधर्म और परधर्म में विस्तार से अंतर बताया जिनका स्व मुखरित हो जाता है वो पर के लिये पीड़ित नहीं होते

कोई भी कार्यक्रम करते समय हमें अपने राष्ट्रधर्म का ध्यान रखना चाहिये क्यों यही भारतीय संस्कृति ऐसी संस्कृति है जो विश्व में शांति फैलाने का माद्दा रखती है 


इसके अतिरिक्त भैया संदीप शुक्ल जी(बैच 1983)का क्या प्रश्न था आदि जानने के लिये सुनें 👇