प्रस्तुत है प्रसादस्थ आचार्य श्री ओम शंकर जी का आज दिनांक 01/04/2022
का सदाचार संप्रेषण
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https://youtu.be/YzZRHAHbK1है
प्रकृति से दूर भागता हुआ और विकृति को प्रकृति बनाने की चेष्टा में रत मनुष्य भ्रम भय दुःख द्वन्द्व का सामना करने लगता है
जब कि यदि हम प्रकृति के सान्निध्य में रहें तो संयम और साधना को सिद्धि तक पहुंचा सकते हैं,आनन्द प्राप्त कर सकते हैं l
प्रकृति से हमें जीवन जीने का उत्साह मिलता है मन को शान्ति मिलती है
कल भैया वैद्य शीलेन्द्र गुप्त और भैया विक्रम गुप्त के पिता जी आदरणीय डा रामकिशोर गुप्त जी( कुरारा निवासी )ने आचार्य जी से भेंट की l इस भेंट से आचार्य जी के सामने पुरानी स्मृतियां उभर कर आ गईं इन संयोगों के क्षणों को भी संजो कर रखना चाहिये जो बहुत सहारा देते हैं l
गीता में
चेतसा सर्वकर्माणि मयि संन्यस्य मत्परः।
बुद्धियोगमुपाश्रित्य मच्चित्तः सततं भव।।18.57।।
भक्ति विश्वास है,विश्वास और आत्मविश्वास एक साथ संयुत हैं आत्मविश्वास परमात्मविश्वास का ही भाग है
मच्चित्तः सर्वदुर्गाणि मत्प्रसादात्तरिष्यसि।
अथ चेत्त्वमहङ्कारान्न श्रोष्यसि विनङ्क्ष्यसि।।18.58।।
की व्याख्या करते हुए आचार्य जी ने बताया कि राक्षसी प्रवृत्ति के लोग कौन होते हैं
इसके अतिरिक्त भारत वर्ष की संस्कृति के किस रहस्य को हमें नित्य समझने की आवश्यकता है जानने के लिये सुनें