प्रस्तुत है आर्यक आचार्य श्री ओम शंकर जी का आज दिनांक 12 अप्रैल 2022
का सदाचार संप्रेषण
https://sadachar.yugbharti.in/
https://youtu.be/YzZRHAHbK1w
दुनिया उलझ जाती है तो उसे सुलझाना अत्यन्त कठिन है प्रयास असफल रहता है भौतिकता से बचाव के कारण ही संन्यास की परिकल्पना की गई लेकिन संन्यास भी भौतिकता का सुसंस्कृत स्वरूप है क्योंकि चाह वहां भी बनी रहती है मोक्ष की शान्ति की
आचार्य जी ने 13 दिसंबर 2015 को लिखीअत्यन्त भावों से पूर्ण अपनी रचित एक कविता सुनाई
पद और प्रतिष्ठा सुख सुविधा के पीछे दीवानी दुनिया
कुदरत से लोहा लेने को आतुर है शैतानी दुनिया......
और गीता कहती है संसार में आये हैं तो सहज जीवन जिएं
सहजं कर्म कौन्तेय सदोषमपि न त्यजेत्।
सर्वारम्भा हि दोषेण धूमेनाग्निरिवावृताः।।18.48।
जसो थारो गाणो वसो म्हारो बजाणो
हम सबमें भावनाएं भरी हैं इसीलिये हम लोग समाज राष्ट्र की चिन्ता करते हैं अतः प्रातःकाल हमें भावनाओं की उपासना करनी चाहिये
प्रकृति में बहुत आकर्षण है यह भावों के साथ जब घुलमिल जाता है तो आत्मानन्द की अनुभूति होती है ध्यान सुदृढ़ होने लगता है और धारणा से संयुत हो जाता है फिर हमारा भाव समाधिस्थ होने लगता है
संसार का मल दूर करने का प्रयास किसे करना चाहिये जानने के लिये सुनें