नमस्ते सदा वत्सले मातृभूमे
त्वया हिन्दुभूमे सुखं वर्धितोऽहम्।
महामङ्गले पुण्यभूमे त्वदर्थे
पतत्वेष कायो नमस्ते नमस्ते॥१॥......
(इसे सर्वप्रथम २३ अप्रैल १९४० को पुणे के संघ शिक्षा वर्ग में गाया गया था। श्री यादव राव जोशी ने इसे सुर दिया था।)
प्रस्तुत है विद्याकर आचार्य श्री ओम शंकर जी का आज दिनांक 14 अप्रैल 2022
का सदाचार संप्रेषण
https://sadachar.yugbharti.in/
https://youtu.be/YzZRHAHbK1Praveen
व्यक्ति में दोष हो सकते हैं लेकिन विचार कभी दूषित नहीं होता राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ कोई व्यक्ति नहीं है एक विचार है l यह संस्था 27 सितम्बर 1925 को एक ऐसे व्यक्ति द्वारा प्रारम्भ की गई जिसके जीवन में प्रसिद्धि परान्मुखता मूर्त रूप बनकर समा गई यानि
हमें प्रसिद्धि चाहिये ही नहीं हमें केवल काम करना है
उस व्यक्ति का नाम है डा केशव बलिराम हेडगेवार
उनके संबंध में पहली छोटी पुस्तिका का प्रकाशन उनकी मृत्यु के पश्चात व.ण. शेंडे ने 1941 में किया था । इसके दो दशक बाद नारायण हरि पालकर ने उनका जीवन चरित्र लिखा हेडगेवार जी को अपने काम में सफलता मिली
दरिद्रता, प्रसिद्धिविहीनता, बड़ों की उदासीनता, परिस्थिति की प्रतिकूलता, पग-पग पर बाधाएँ, विरोध, उपेक्षा, उपहास आदि के कटु अनुभव के साथ-साथ स्वीकृत कार्य की पूर्ति के लिए आवश्यक साधनों का अत्यन्त अभाव आदि कितनी ही कठिनाइयाँ मार्ग में आयें तो भी अपने कार्य के साथ तन्मय होकर
मुक्तसङ्गोऽनहंवादी धृत्युत्साहसमन्वितः।
सिद्ध्यसिद्ध्योर्निर्विकारः कर्ता सात्त्विक उच्यते।।18.26।।
इस वृत्ति से
सुख-दुख, मानापमान, यशापयश आदि किसी की भी चिन्ता न करते हुए यदि कोई प्रयत्नरत रहेगा तो उसे अवश्य ही सफलता मिलेगी।
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ हमारे देश की ऋषि परम्परा का कलियुग का व्यावहारिक स्वरूप है
जिस दिन संपूर्ण भारत भगवामय हो जायेगा उस दिन सारे विश्व का कल्याण हो जायेगा