प्रस्तुत है स्थिरसङ्गर आचार्य श्री ओम शंकर जी का आज दिनांक 21अप्रैल 2022
का सदाचार संप्रेषण
https://sadachar.yugbharti.in/
https://youtu.be/YzZRHAHbK1w
योग पद्धति की एक विधा है हठ योग लेकिन आचार्य जी उसके पक्षपाती नहीं हैं न ही तन्त्र -शास्त्र के
आचार्य जी सहज कर्मशील उदात्त सरल जीवन के पक्षधर हैं
हमें संसार में रहकर संसारी भावों को समझकर संसार की अनुकूलता देखनी चाहिये और संसार की समस्याओं को अपने पौरुष और पराक्रम से शमित करने का संकल्प करना चाहिये
यद्यपि
सर्वस्य चाहं हृदि सन्निविष्टो
मत्तः स्मृतिर्ज्ञानमपोहनं च।
वेदैश्च सर्वैरहमेव वेद्यो
वेदान्तकृद्वेदविदेव चाहम्।।15.15।।
इसकी व्याख्या को विस्तार देते हुए आचार्य जी ने कहा कि संसार में आये हो तो कर्म करो जो स्वयं को परिवेश को आनन्दमय रख सके
संसार के स्वरूप के साथ स्वभाव का संतुलन करना अपने को आनन्द में रखता है
इन्द्रियां तो अद्भुत हैं कि तृप्त होने के बाद फिर अतृप्त हो जाती हैं
हमारी सहज रूप से प्रशंसा हो रही है तो यह हमें आनन्द देती है
सुखदुःखे समे कृत्वा लाभालाभौ जयाजयौ।
ततो युद्धाय युज्यस्व नैवं पापमवाप्स्यसि।।2.38।।
ये सिद्धयोगी अलग हैं
सामान्य रूप से निन्दा बुरी लगती है प्रशंसा अच्छी लगती है यही संसार है इस संसार के साथ अपना निर्वाह करना जीवन की विधि व्यवस्था है
संसार के सहज जीवन का एक उपक्रम है कि अपने वाणी व्यवहार से न मैं किसी को कष्ट पहुंचाऊं न मुझसे कोई खराब व्यवहार करे
आचार्य जी ने सूचित किया कि वो आज और कल उन्नाव और लखनऊ रहेंगे
जिस कारण आचार्य जी का लेखन और चिन्तन बाधित रहेगा
ऐसी परिस्थितियों में हमें परेशान नहीं होना चाहिये कि हमारा लेखन चिन्तन आदि बाधित हो रहा है और हमें प्रकृति के साथ सान्निध्य स्थापित करना चाहिये
आचार्य जी ने यह भी बताया कि हमें क्यों अन्य मनोरंजन के साधन ढूंढने की आवश्यकता नहीं है
सहजसमाधि अत्यन्त आनन्दमय है इसकी विस्तृत और उत्कृष्ट व्याख्या अत्यन्त प्रबल जिज्ञासु प्रश्नकर्ताओं और उत्तर देने में आनन्द की अनुभूति करने वाले उत्तरकर्ता के कारण संभव है
आचार्य जी से कल कौन भैया (जिन्होंने जुगलदेवी विद्यालय से सन् 1997 में इंटरमीडिएट किया) मिले
आचार्य जी लखनऊ क्यों जा रहे हैं आदि जानने के लिये सुनें