वाचक ! प्रथम सर्वत्र ही ‘जय जानकी जीवन’ कहो,
फिर पूर्वजों के शील की शिक्षा तरंगों में बहो।
दुख, शोक, जब जो आ पड़े, सो धैर्य पूर्वक सब सहो,
होगी सफलता क्यों नहीं कर्त्तव्य पथ पर दृढ़ रहो।।
--जयद्रथ वध (मैथिली शरण गुप्त )
प्रस्तुत है शुद्धमति आचार्य श्री ओम शंकर जी का आज दिनांक 22 अप्रैल 2022
का सदाचार संप्रेषण
https://sadachar.yugbharti.in/
https://youtu.be/YzZRHAHbK1w
स्थान :उन्नाव
जिनके पास संसारी दृष्टि है वो संसार के हिसाब से अपनी सफलता असफलता का आकलन कर समय व्यतीत करते हैं जिन भाग्यशाली लोगों के पास दिव्यदृष्टि होती है वो वर्तमान का स्मरण करते हुए भविष्य
का दर्शन भी कर लेते हैं वे परमात्मा के कृपापात्र होते हैं वे कृपापात्र कभी कभी परमात्मा के पार्षद भी हो जाते हैं
आचार्य जी ने परामर्श दिया कि स्वाध्याय संयम श्रद्धा से हमारे मन में उठ रहे बहुत से प्रश्नों के उत्तर खोजने पर मिल जायेंगे
श्रद्धा स्वयं के प्रति भी होनी चाहिये आत्मानुभूति का प्रयास भी आवश्यक है
आचार्य जी का सदैव यही प्रयास रहा है कि वो गूढ़ विषय को भी सरल करके समझा देते हैं
हम लोग बहुत भाग्यशाली हैं कि आज भी हम लोग आचार्य जी के संपर्क में हैं और साथ मिलकर योजनाएं बनाते हैं
योजनाओं की सफलता असफलता की ओर हमें ध्यान नहीं देना चाहिये योजनाएं न बनाना अकर्मण्यता है
निश्चेष्ट होकर बैठना और सब प्रकार की संपत्तियों को अपने नाम कर लेना यह संसार की वृत्ति संघर्ष का कारण बनती है जिसे हम रूस यूक्रेन युद्ध में देख सकते हैं महाभारत की तरह
मनुष्यत्व का आनन्द हमें तभी मिलेगा जब हम संवेदनशीलता के साथ अपने कार्य और व्यवहार को संपादित करेंगे
तदपि कही गुर बारहिं बारा। समुझि परी कछु मति अनुसारा॥
भाषाबद्ध करबि मैं सोई। मोरें मन प्रबोध जेहिं होई॥
बार बार गीता मानस उपनिषद् पर आचार्य जी जोर देते हैं ताकि इनके माध्यम से हम संसार में रहने का सलीका सीख सकें
तुलसीदास वेदव्यास वाल्मीकि के प्रति भी हमारी श्रद्धा होनी चाहिये क्योंकि इन्हीं के माध्यम हमें गीता मानस जैसे अद्वितीय ग्रंथ मिले हैं
आचार्य जी का भी यही प्रयास रहता है कि हमारा आत्मबोध जाग्रत हो
आज आचार्य जी लखनऊ जा रहे हैं l
इसके अतिरिक्त ज्ञान -यज्ञ क्या है रस्सी बालटियां क्या हैं
भविष्य में इतिहास का निर्माण कौन करने जा रहा है आदि जानने के लिये सुनें