प्रस्तुत है स्थितधी आचार्य श्री ओम शंकर जी का आज दिनांक 23 अप्रैल 2022
का सदाचार संप्रेषण
किसी को यह भ्रम नहीं पालना चाहिये कि वो अमुक कर्म कर रहा है और इसका जितना अधिक अभ्यास हो जाता है उसको कर्म के आनन्द का लाभ उतना अधिक मिलता है
संसार की समस्याओं में राहत पाने के लिये आचार्य जी प्रायः गीता का सहारा लेने के लिये कहते हैं
मोहग्रस्त अर्जुन के सम्मोहन को दूर करने के लिये भगवान् श्री कृष्ण ने गीता का उपदेश दिया हम लोगों में भ्रम है कि एक घटना से गीता उत्पन्न हुई जब कि महाभारत के शान्तिपर्व में लिखा है
त्रेतायुगादौ च ततो विवस्वान्मनवे ददौ |
मनुश्र्च लोकभृत्यर्थं सुतायेक्ष्वाक्वे ददौ |
इक्ष्वाकुणा च कथितो व्याप्य लोकानवस्थितः ||
“त्रेतायुग के आदि में विवस्वान् ने परमेश्र्वर सम्बन्धी इस विज्ञान का उपदेश मनु को दिया और मनुष्यों के पिता मनु ने इसे अपने सुत इक्ष्वाकु को दिया | इक्ष्वाकु इस पृथ्वी के शासक थे और उस रघुकुल के पूर्वज भी थे,
इससे प्रमाण मिलता है कि मानव समाज में महाराजा इक्ष्वाकु के काल से ही भगवद्गीता विद्यमान थी |
ये सारे हम लोगों के इतिहास के पन्ने परिस्थितिओं के कारण गायब कर दिये गये और हम लोग पार्थिव चिन्तन में भ्रमित हो गये हम इस चिन्तन से उठकर अपने आत्मचिन्तन में प्रवेश करें
आचार्य जी ने जोर दिया कि इसके लिये नियमित रूप से हमें उपासना करनी चाहिये ताकि हम पार्थिव चिन्तन भौतिक चिन्तन के भ्रम में डूबे न रहें
आचार्य जी ने पूजन अर्चन और उपासना में अन्तर बताया
विचारपूर्वक काम करना आनन्द देता है बेगार टालना परेशानी पैदा करता है
उपासना से मानव जीवन संस्कारी हो जाता है अनेक क्यों के उत्तर हमें मिलते जाते हैं आचार्य जी ने परामर्श दिया कि हम गीता के चौथे अध्याय में 16 से 24 छन्द तक पढ़ लें
हमें संसार में रहने का सलीका आ जाये तो संसार आनन्द देता है हमारा मनोबल कष्टों का निवारण करता है मनुष्य का शरीर बहुत रहस्यात्मक है कष्टों में हम परेशान न हों अपनी क्षमता पहचानें
इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने कल अपनी लखनऊ यात्रा के बारे में क्या बताया जानने के लिये सुनें