स्वस्त्यस्तु विश्वस्य खलः प्रसीदतां
ध्यायन्तु भूतानि शिवं मिथो धिया।
मनश्च भद्रं भजतादधोक्षजे
आवेश्यतां नो मतिरप्यहैतुकी।।(भागवत 5/18/9)
प्रस्तुत है वाचोयुक्ति आचार्य श्री ओम शंकर जी का आज दिनांक 25 अप्रैल 2022
का सदाचार संप्रेषण
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https://youtu.be/YzZRHAHbK1w
विषयों का संगुम्फन संस्कार का मूल होता है हम लोग विषयों का संगुम्फन नहीं कर पाते क्योंकि हमारी शिक्षा बहुत विश्लेषणात्मक हो गई है
मातृ भाव के कारण हम कहते हैं भारत माता, धरती माता, सरस्वती माता
इसका विश्लेषण नहीं होना चाहिये
आत्मचिन्तन में हम प्रवेश करें गम्भीरता से चिन्तन करते हुए हम लोग समाज जीवन में परिवार में और चाहे हम लोग संपूर्ण विश्व का चिन्तन करें तो भी समन्वय सामञ्जस्य ढूंढे
मनु की चर्चा ऋग्वेद से है मनु सूर्यपुत्र हैं सूर्य प्राणदाता है गायत्री मन्त्र सूर्य उपासना पर आधारित है सूर्य को हम संस्कारी लोग जल देते हैं
इसी तरह हम लोग गंगा माता मां नर्मदा आदि कहते हैं प्रकृति में भी संस्कार का भाव प्रविष्ट कराया गया प्रकृति की निर्मिति सूर्य के पश्चात् हुई परमात्मा क्या है
परमात्मा है
महर्षयः सप्त पूर्वे चत्वारो मनवस्तथा।
मद्भावा मानसा जाता येषां लोक इमाः प्रजाः।।10.6।।
सात महर्षि, उनसे भी पहले होने वाले चार सनकादि और चौदह मनु -- ये सारे मेरे मन से पैदा हुए हैं और मुझमें श्रद्धाभक्ति रखनेवाले हैं, जिनकी संसार में यह सम्पूर्ण प्रजा है।
अर्जुन को भगवान् श्रीकृष्ण ने अपना विराट् स्वरूप दिखाया
दंष्ट्राकरालानि च ते मुखानि
दृष्ट्वैव कालानलसन्निभानि।
दिशो न जाने न लभे च शर्म
प्रसीद देवेश जगन्निवास।।11.25।।
त्वमादिदेवः पुरुषः पुराण
स्त्वमस्य विश्वस्य परं निधानम्।
वेत्तासि वेद्यं च परं च धाम
त्वया ततं विश्वमनन्तरूप।।11.38।।
आचार्य जी ने परामर्श दिया कि हम इनका अध्ययन करें और चर्चा भी करें
ज्ञान के नेत्र खुलने पर हमारे भाव को पोषण मिलता है यह सब हमें सत्य लगने लगता है अज्ञानता में भय और भ्रम रहता है
" भारत में लोकतांत्रिक संस्कार "
विधि और व्यवहार पर भी चर्चा कर सकते हैं
विश्वास सबसे बड़ा धन है फिर हम आत्मविश्वासी हो जाते हैं और हम परमात्मा पर भी विश्वास करने लगते हैं हमारे अन्दर शक्ति का पुञ्ज प्रवेश करता है
इसके अतिरिक्त पारखद क्या है? भैया राजीव शर्मा जी का उल्लेख क्यों हुआ आदि जानने के लिये सुनें