26.4.22

आचार्य श्री ओम शंकर जी का दिनांक 26 अप्रैल 2022 का सदाचार संप्रेषण

 सठ सुधरहिं सतसंगति पाई। पारस परस कुधात सुहाई॥

बिधि बस सुजन कुसंगत परहीं। फनि मनि सम निज गुन अनुसरहीं॥


प्रस्तुत है प्रयतमानस आचार्य श्री ओम शंकर जी का आज दिनांक 26 अप्रैल 2022

  का  सदाचार संप्रेषण 




https://sadachar.yugbharti.in/


https://youtu.be/YzZRHAHbK1w


इन सदाचार संप्रेषणों का मुख्य विषय अध्यात्म रहता है   जिसे आचार्य जी शौर्य से संयुत करते हैं क्योंकि शौर्य ही इस संसार की लगभग सारी समस्याओं को सुलझाने का आधार बनता है l शौर्य प्रमंडित अध्यात्म से संसार और असंसार दोनों की समझ आसानी से आ जाती है संसार में समस्याएं हैं और अध्यात्म में समाधान और इनके बीच का सेतु शौर्य है


इस रहस्य को समझने के लिये चिन्तन की आवश्यकता है फिर चिन्तन के मन्थन की और सबसे महत्त्वपूर्ण है कि चिन्तन मन्थन से जो प्राप्त है उसको यथासमय यथाविधि यथास्थान प्रयोग किया जाए


ये सब प्राप्त होने पर हम समाज के समझदार आत्मविश्वासी आत्मशक्तिसंपन्न संभ्रान्त व्यक्ति गिने जाते हैं


आचार्य जी ने स्वामी अभेदानन्द (2/10/1866-8/9/1939)

(पूर्व नाम काली प्रसाद चन्द्र )

द्वारा लिखी पुस्तक मृत्यु के उस पार की चर्चा की जिसमें प्रेत योनि का उल्लेख है

प्रेत योनि को हम लोगों जैसा शरीर नहीं मिलता प्रेतों को प्यास लगती है पानी पी नहीं सकते अर्थात् भावों को क्रिया रूप में परिवर्तित नहीं कर सकते

अध्यात्म के चिन्तन मनन विचार और अपने शारीरिक सदाचार के अनुपालन से हम बुरी संगति में पड़ने पर भी अपना अच्छा आचरण नहीं छोड़ेंगे

प्रातःकाल जागरण, उचित दवाओं का प्रयोग, पूजा का सहज अभ्यास,प्राणायाम, घर में हवन, अच्छे ग्रन्थों का अध्ययन आदि आवश्यक हैं जहां भी सत् है उसकी संगति करें


इसके अतिरिक्त सहज मृत्यु क्या है शरीर का अभ्यास क्या है

नीरज भैया, डा संकटा प्रसाद पांडेय जी, करपात्री जी महाराज, डा वाजपेयी जी , स्वामी रामकृष्ण परमहंस का नाम किन संदर्भों में आया जानने के लिये सुनें