जाहि बड़ाई चाहिए, तजे न उत्तम साथ।
ज्यों पलास संग पान के, पहुँचे राजा हाथ।।
प्रस्तुत है कृतपरिश्रम आचार्य श्री ओम शंकर जी का आज दिनांक 27 अप्रैल 2022
का सदाचार संप्रेषण
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https://youtu.be/YzZRHAHbK1w
शरीर से संसार की यात्रा हम प्रतिदिन जागरण से शयन तक करते हैं जिनका अन्तर और बाह्य एकाकार हो जाता है वो अध्यात्म की सरितांवरा में पूरी तरह डूब जाते हैं
उन्हें कोई व्याधि नहीं सताती, वो शब्दों में प्रवेश करते हैं वो चिन्तन करते हैं कि ॐ कैसे आया
इस तरह की अनुभूति यदि अभिव्यक्ति पा जाती है तो संसार के लिये अत्यन्त कल्याणकारी उपाय है
बहुत से कथावाचक भीड़ घसीट लेते हैं
यदि हमें कोई व्याधि न सताए हमें किसी पीड़ा का अनुभव न हो तो यह शरीर ही संसार हो जाता है हम लोगों के साथ ऐसी अनुभूति और अभिवक्ति कुछ मात्रा में सहयोग कर रही है इसलिये आचार्य जी परामर्श दे रहे हैं कि हम लोग मानस का सहारा लें
मुगलों के क्रूर शासन में अपने अस्तित्व के लिये जूझ रहे हिन्दुओं में आत्मोत्थान की ज्योति जलाने शौर्य का संचार करने के लिये राष्ट्रभक्त तुलसीदास ने मानस की रचना की
जो सुमिरत सिधि होइ गन नायक करिबर बदन।
करउ अनुग्रह सोइ बुद्धि रासि सुभ गुन सदन।।1।।
गणेश जी का मुख इस प्रकार का क्यों हैं यह तथाकथित विचारशील लोगों को कभी समझ में नहीं आयेगा इसलिये हम लोग विश्वास करना सीखें
बंदउं प्रथम महीसुर चरना। मोह जनित संसय सब हरना॥
सुजन समाज सकल गुन खानी। करउँ प्रनाम सप्रेम सुबानी॥2॥
आचार्य जी ने इस दोहे की व्याख्या करके बताया कि हम लोग आत्मस्थ होने का प्रयास करें, शरीर और मन को शुद्ध करें मानस का पाठ करें हनुमान चालीसा का पाठ करें सस्वर पाठ करें उपासना ध्यान धारणा करें मनुष्य का जीवन बहुत महत्त्वपूर्ण है
हम लोग अपने दीप बाती तेल को संयुत करें ज्ञान का दीप प्रदीप्त करें
इसके अतिरिक्त आचार्य रजनीश का नाम माननीय प्रधानमन्त्री का नाम क्यों आया जानने के लिये सुनें