28.4.22

आचार्य श्री ओम शंकर जी का दिनांक 28 अप्रैल 2022 का सदाचार संप्रेषण

 तू है गगन विस्तीर्ण तो मैं एक तारा क्षुद्र हूँ,

तू है महासागर अगम मैं एक धारा क्षुद्र हूँ ।

तू है महानद तुल्य तो मैं एक बूँद समान हूँ,

तू है मनोहर गीत तो मैं एक उसकी तान हूँ ।।

(भक्त की अभिलाषा -गया प्रसाद 'सनेही ')


प्रस्तुत है जातप्रत्यय आचार्य श्री ओम शंकर जी का आज दिनांक 28 अप्रैल 2022

  का  सदाचार संप्रेषण 




https://sadachar.yugbharti.in/


https://youtu.be/YzZRHAHbK1w


हम लोगों को यह मानकर चलना ही चाहिये कि यह सदाचार संप्रेषण परमात्मा की व्यवस्था से ही चल रहा है

हम जब इस सदाचार संप्रेषण से अपने को प्रातःकाल संयुत करते हैं तो क्षणांश में भी यह अनुभूति यदि आ जाए कि मैं कौन हूं तो मन का मालिन्य अभाव कुंठाएं कष्ट निराशा व्यथाएं शमित हो जाती हैं यदि ये कुछ देर के लिये शमित होती हैं तो इनका विस्तार भी हो सकता है संभव सब कुछ है

इसका प्रारम्भ शरीर की शुद्धि से करें खानपान सही रखें

प्रतिदिन विकारों को साफ करते रहें उपासना करें 

इस संसार की तरह मनुष्य जीवन भी अद्भुत है इसके रचनाकार का वर्णन करना असंभव है क्योंकि किसी भी अनुभवकर्ता की अनुभूतियां अभिव्यक्ति को उसके निकट तक तो पहुंचा देती हैं लेकिन उसका स्पर्श नहीं कर पातीं


देखन बागु कुअँर दुइ आए। बय किसोर सब भाँति सुहाए॥

स्याम गौर किमि कहौं बखानी। गिरा अनयन नयन बिनु बानी॥

के द्वारा कवि की इसी तरह की अभिव्यक्ति हम देख सकते हैं कि वाणी बिना नेत्र की है और नेत्र बिना वाणी के हैं तो उसका वर्णन कैसे किया जाए


आचार्य जी ने परामर्श दिया

कि हम लोग निम्नांकित छंद पढ़ें 


मुद मंगलमय संत समाजू। जो जग जंगम तीरथराजू॥

राम भक्ति जहँ सुरसरि धारा। सरसइ ब्रह्म बिचार प्रचारा॥4॥

बिधि निषेधमय कलिमल हरनी। करम कथा रबिनंदनि बरनी॥

हरि हर कथा बिराजति बेनी। सुनत सकल मुद मंगल देनी॥5॥

बटु बिस्वास अचल निज धरमा। तीरथराज समाज सुकरमा॥

सबहि सुलभ सब दिन सब देसा। सेवत सादर समन कलेसा॥6॥

अकथ अलौकिक तीरथराऊ। देह सद्य फल प्रगट प्रभाऊ॥7॥

यह संतत्व हम सबके अन्दर विद्यमान है उदय होने की देर है

इसके अतिरिक्त 

भैया अक्षय बैच 2008,भैया मनीष कृष्णा, बैरिस्टर साहब, नाभा दास का नाम क्यों आया हनुमान धारा में आचार्य जी को कौन मिला था आदि जानने के लिये सुनें