प्रस्तुत है अध्यात्म -निलय आचार्य श्री ओम शंकर जी का आज दिनांक 4 अप्रैल 2022
का सदाचार संप्रेषण
https://sadachar.yugbharti.in/
https://youtu.be/YzZRHAHbK1निर्मान
स्थान, पर्यावरण, वातावरण, सुसंगति, कुसंगति आदि संसार का स्वरूप है और उसका स्वभाव है सुख की खोज और दुःख की निवृत्ति के लिये प्रयत्न करते रहना
क्योंकि संसार स्वयं गतिमान है तो जब तक हम संसारी भाव में रहते हैं तब तक गतिमानता हमारा स्वभाव होती है किन्तु हम लगातार गतिमान नहीं रहना चाहते हैं और स्थिरता खोजना चाहते हैं ये संसार के प्रयत्न हैं
कल के अत्यन्त उत्साहजनक आनन्दप्रद युग -भारती नवसंवत्सर स्वागत समारोह में बहुत सी छिपी प्रतिभाएं उजागर हुईं
इस तरह के कार्यक्रमों से उत्साह उमंग जोश की अभिवृद्धि होती है
इसी कारण हमारे देश में कुम्भ के मेले आदि बहुत प्रकार के मेले होते हैं अन्य कार्यक्रम होते हैं
हमें इस देश के अस्तित्व को पहचानते हुए अपने व्यक्तित्व का सामञ्जस्य बैठाना होगा
यही सदाचार का मूल संदेश है
उत्साह सम्पन्नं अदीर्घ सूत्रं क्रियाविधिज्ञं व्यसनेष्वासक्तं |
शूरं कृतज्ञं दृढ़सौह्रदं च लक्ष्मीः स्वयं याति निवासहेतोः ||
जो उत्साह से भरा हुआ है, आलसी नहीं है, कार्य की विधि को जानता है, नशा से
मुक्त है, पराक्रमी है और लोगों की भलाई चाहने वाला है उसके पास लक्ष्मी स्वयं चलकर निवास करने आती है
निर्मानमोहा जितसङ्गदोषा
अध्यात्मनित्या विनिवृत्तकामाः।
द्वन्द्वैर्विमुक्ताः सुखदुःखसंज्ञै
र्गच्छन्त्यमूढाः पदमव्ययं तत्।।15.5।।
की व्याख्या में आचार्य जी ने कहा कि अध्यात्म में प्रवेश शौर्य की भूमिका है शैथिल्य नहीं है और हम कुसंगति के दोष से भी बचें
इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने भैया राजेश खरे का नाम क्यों लिया, सरौंहां में परसों क्या है आदि जानने के लिये सुनें