कोदंड कठिन चढ़ाइ सिर जट जूट बाँधत सोह क्यों।
मरकत सयल पर लरत दामिनि कोटि सों जुग भुजग ज्यों॥
कटि कसि निषंग बिसाल भुज गहि चाप बिसिख सुधारि कै।
चितवत मनहुँ मृगराज प्रभु गजराज घटा निहारि कै॥
प्रस्तुत है गोप आचार्य श्री ओम शंकर जी का आज दिनांक 10 मई 2022
का सदाचार संप्रेषण
https://sadachar.yugbharti.in/
https://youtu.be/YzZRHAHbK1w
इन सदाचार संप्रेषणों से हमें उचित और अनुचित का अन्तर समझ में आता रहता है
इन्हें सुनते समय हम यदि ध्यानस्थ होंगे तो हमें अधिक लाभ होगा
आजकल हमलोग अरण्यकांड में प्रवेश किये हुए हैं
अरण्यकांड में घटनाएं अनेक हैं और वो घटनाएं किसी एक दिशा को प्रेरित करती हैं
सूपनखा रावन कै बहिनी। दुष्ट हृदय दारुन जस अहिनी॥
पंचबटी सो गइ एक बारा। देखि बिकल भइ जुगल कुमारा॥2॥......
लछिमन अति लाघवँ सो नाक कान बिनु कीन्हि।
ताके कर रावन कहँ मनौ चुनौती दीन्हि॥17॥
तुलसीदास ने इस घटना को संसार धर्म से संयुत कर बहुत अच्छा निर्वाह किया है
लै जानकिहि जाहु गिरि कंदर। आवा निसिचर कटकु भयंकर॥
रहेहु सजग सुनि प्रभु कै बानी। चले सहित श्री सर धनु पानी॥6॥
नानापुराणनिगमागमसम्मतं यद् रामायणे निगदितं क्वचिदन्यतोऽपि।
स्वान्तःसुखाय तुलसी रघुनाथगाथा-भाषानिबन्धमतिमञ्जुलमातनोति।।7।।
का उल्लेख करते हुए आचार्य जी ने बताया कि
वाराहीतंत्र' के अनुसार आगम इन सात लक्षणों से परिलक्षित होता है :
सृष्टि, प्रलय, देवतार्चन, सर्वसाधन, पुरश्चरण, षट्कर्म (=शांति, वशीकरण, स्तंभन, विद्वेषण, उच्चाटन तथा मारण) साधन तथा ध्यानयोग।
आगम तन्त्र शास्त्र की गहन परम्परा है यह इस संसार में रहने के सलीके तरीके बताता है
कलियुग में सुधी इस आगम पद्धति से देवताओं का पूजन करते हैं
इन सब को बताने के पीछे आचार्य जी का उद्देश्य यही रहता है कि हमें विश्वास हो सके कि हमारी संस्कृति हमारा ज्ञान हमारा अनुसंधान अनुपमेय है अद्भुत है
हमने बहुत सी समस्याओं को सुलझाया है
ऐतिहासिक गलतियों पर चिन्तन न कर सफलताओं पर चर्चा करें ताकि हमारा हौसला बढ़े
सकारात्मक सोच रखें
ऐसे अनेक उदाहरण हैं जिनसे पता चलता है हम पिटते नहीं पीटते हैं
परमात्मा पर आश्रित विचार विकार नहीं है
यह शैथिल्य नहीं है विश्वास की भूमिका है