11.5.22

आचार्य श्री ओम शंकर जी का दिनांक 11 मई 2022 का सदाचार संप्रेषण

 विस्तराय तु लोकानां स्वयं नारायणः प्रभुः।

व्यास रुपेण कृतवान् पुराणानि महीतले।।


प्रस्तुत है बृहन्नेत्र आचार्य श्री ओम शंकर जी का आज दिनांक 11 मई 2022

  का  सदाचार संप्रेषण 




https://sadachar.yugbharti.in/


https://youtu.be/YzZRHAHbK1w

आचार्य जी के संप्रेषणों में अत्यन्त उपयोगी ज्ञानवर्धक प्रेरक संसार अथवा संसारेतर ज्ञान से समन्वित विषय रहते हैं


खण्डित शिक्षा के साथ लम्बे समय तक जीवनयापन करने का ही दुष्परिणाम हुआ कि हम मनुष्यत्व भूल गये


पशुवर्ग जिसे ईश्वर की अनुभूति है अभिव्यक्ति नहीं है से इतर मानववर्ग को अनुभूति और अभिव्यक्ति दोनों का सौभाग्य प्राप्त है


विद्यालय के एक प्रसंग का उल्लेख करते हुए आचार्य जी ने बताया कि किस कारण वेद अपौरुषेय हैं



आचार्य जी का प्रयास रहता है कि हमारा जीवन संस्कारोन्मुख विचारोन्मुख बना रहे हम जीवन के रहस्यों को जानने वाले जिज्ञासु बनें


मनुष्य ईश्वर की एक अद्भुत कृति है मनुष्य मनुष्य के रूप में ही आया है लेकिन मनुष्य का परिष्करण चिन्तन संगति ज्ञान नियमों के आधार पर हुआ है


मनुष्य को पहले ज्ञान प्राप्त हुआ और तब ज्ञान को उसने विधान प्रदान किया ज्ञान का विधान ही शास्त्र है इसी शास्त्र को आगे हमने शिक्षा कहा


पुराणं सर्वशास्त्राणां प्रथमं ब्रह्मणा स्मृतम् l अनन्तरं च वक्त्रेभ्यो वेदास्तस्य विनिर्गताः ll


इन संप्रेषणों में इतने सारे तत्त्व हैं कि हम अपनी सांसारिक समस्याओं को आसानी से सुलझा सकते हैं

कुछ गूढ़ विषयों को हम सरलता से समझ सकते हैं यदि हम प्रश्न पूछें और आचार्य जी उत्तर दें


इस वायवीय शिक्षण से लाभ प्राप्त करते हुए हम अपने कार्य व्यापार को कर्तव्य मानकर आनन्द के साथ करेंगे


यदि हम बेगार टालेंगे तो चिन्तन से दूर हो जायेंगे

आत्मस्थ होने की चेष्टा करें अपने शरीर को पवित्र मन्दिर मानें दूसरों में भी मन्दिर देंखे लेकिन दुष्ट को दंड देने से भी न चूकें


विषधरतोऽप्यति विषमः ख़लः इति न मृषा वदन्ति विद्वांसः।

यदयं नकुलद्वेषी स कुलद्वेषी पुनः पिशुनः ll