9.5.22

आचार्य श्री ओम शंकर जी का दिनांक 9 मई 2022

 सान्द्रानन्दपयोदसौभगतनुं पीताम्बरं सुंदरं

पाणौ बाणशरासनं कटिलसत्तूणीरभारं वरम्।

राजीवायतलोचनं धृतजटाजूटेन संशोभितं

सीतालक्ष्मणसंयुतं पथिगतं रामाभिरामं भजे॥2॥


प्रस्तुत है आत्मयाजिन् आचार्य श्री ओम शंकर जी का आज दिनांक 9

मई 2022

  का  सदाचार संप्रेषण 




https://sadachar.yugbharti.in/


https://youtu.be/YzZRHAHbK1w


हम अत्यन्त सौभाग्यशाली हैं कि आचार्य जी के सांसारिक प्रपंचों में लगातार फंसे रहने के बाद भी उनके आप्तवचन से हम लाभान्वित हो रहे हैं


साधनों के भंवर में फंसकर साधानानुरक्त होना भक्ति का आश्रय लेकर साधना की ओर उन्मुख होना यही दर्शाता है कि वास्तव में मनुष्य परमात्मा की एक अद्भुत रचना है


परमात्मा द्वारा बनाया गया संयोग है कि हम आनन्द और उत्साह में उछलते हैं और सुख दुःख में डूब जाते हैं


परमात्मा के बनाये सिद्धान्तों पर निरन्तर चलते रहने से दैविक, आधिदैविक और अधिभौतिक त्रितापों से हमें सहज मुक्ति मिलेगी।


अरण्य कांड में


भगवान् राम कई ऋषियों के आश्रम में जाते हैं प्रसंग वहां का है जब सीता लक्ष्मण सहित भगवान् राम सुस्ता रहे हैं

एक बार प्रभु सुख आसीना। लछिमन बचन कहे छलहीना॥

सुर नर मुनि सचराचर साईं। मैं पूछउँ निज प्रभु की नाईं॥3॥


मोहि समुझाइ कहहु सोइ देवा। सब तजि करौं चरन रज सेवा॥

कहहु ग्यान बिराग अरु माया। कहहु सो भगति करहु जेहिं दाया॥4॥


ईस्वर जीव भेद प्रभु सकल कहौ समुझाइ।

जातें होइ चरन रति सोक मोह भ्रम जाइ॥14॥


थोरेहि महँ सब कहउँ बुझाई। सुनहु तात मति मन चित लाई॥

मैं अरु मोर तोर तैं माया। जेहिं बस कीन्हे जीव निकाया॥1॥


एक दुष्ट अतिसय दुखरूपा। जा बस जीव परा भवकूपा॥

एक रचइ जग गुन बस जाकें। प्रभु प्रेरित नहिं निज बल ताकें॥3॥


एहि कर फल पुनि बिषय बिरागा। तब मम धर्म उपज अनुरागा॥

श्रवनादिक नव भक्ति दृढ़ाहीं। मम लीला रति अति मन माहीं॥4॥


बचन कर्म मन मोरि गति भजनु करहिं निःकाम।

तिन्ह के हृदय कमल महुँ करउँ सदा बिश्राम॥16॥


आचार्य जी ने इनको पढ़ने का परामर्श दिया


भगवान् राम बता रहे हैं कि मेरी भक्ति भक्तों को सुख देने वाली है

जो माया ईश्वर आत्मस्वरूप को नहीं जानता वो जीव है

अविद्या दुष्ट है विद्या जगत की रचनाकार है


जो करता है परमात्मा करता है परमात्मा सब अच्छा ही करता है

हमें आत्मचिन्तन में समय लगाना चाहिये भ्रमित होने पर मानस और गीता का सहारा लें मार्ग निकल आयेगा

आत्मशक्ति की आवश्यकता है आत्मिक स्वास्थ्य परिशुद्ध बना रहे इसका प्रयास करते रहें


घटाकाश (09:00 पर ) का क्या अर्थ है,किसी की निष्प्राण देह के प्रति हमारा व्यवहार कैसा रहता है आदि जानने के लिये सुनें