13.5.22

आचार्य श्री ओम शंकर जी का दिनांक 13 मई 2022 का सदाचार संप्रेषण

 कुन्देन्दीवरसुन्दरावतिबलौ विज्ञानधामावुभौ

शोभाढ्यौ वरधन्विनौ श्रुतिनुतौ गोविप्रवृन्दप्रियौ।

मायामानुषरूपिणौ रघुवरौ सद्धर्मवर्मौ हितौ

सीतान्वेषणतत्परौ पथिगतौ भक्तिप्रदौ तौ हि नः ॥1॥



प्रस्तुत है  अधिगुण आचार्य श्री ओम शंकर जी का आज दिनांक 13 मई 2022

  का  सदाचार संप्रेषण 




https://sadachar.yugbharti.in/


https://youtu.be/YzZRHAHbK1w



शरीर में विकार होते हुए भी विचार यदि सुरक्षित संरक्षित परिपोषित संबलित और व्यवस्थित रहते हैं तो यह भगवान् की कृपा है मन शरीर बुद्धि की ऐसी सामञ्जस्यपूर्ण अवस्था का हमें लाभ उठाना चाहिये


शरीर में विकारों से मन शरीर की चिन्ता में मग्न रहता है और विचार खंडित हो जाते हैं

विचार विकृत हो जायें तो हम अंधकार में भटकेंगे


खाद्य अखाद्य का विवेक हो आहार विहार सही हो तो तन सही रहेगा तन सही होगा तो हमारा सही काम में मन लगेगा


मानस और गीता हमें स्वाध्याय अध्ययन और भक्तिपूर्वक जीवन जीने की प्रेरणा देते हैं शौर्य प्रमंडित अध्यात्म कितना महत्त्वपूर्ण है यह भी समझ में आता है


आचार्य जी ने 6मई के संप्रेषण में नारद जी का प्रसंग   बताया था

 अरण्यकांड में ही 


षट बिकार जित अनघ अकामा। अचल अकिंचन सुचि सुखधामा॥

अमित बोध अनीह मितभोगी। सत्यसार कबि कोबिद जोगी॥4॥


सावधान मानद मदहीना। धीर धर्म गति परम प्रबीना॥5॥


गुनागार संसार दु:ख रहित बिगत संदेह।

तजि मम चरन सरोज प्रिय तिन्ह कहुँ देह न गेह॥45ll

का उल्लेख करते हुए आचार्य जी ने बताया कि जो भक्तिपूर्वक जीवन जीते हैं वो सांसारिक प्रपंचों में रहते हुए भी उसमें संलिप्त नहीं होते


यह काम कठिन है लेकिन इसकी ओर हमारी उन्मुखता रहती है


जब जब होइ धरम कै हानी। बाढहिं असुर अधम अभिमानी।।

करहिं अनीति जाइ नहिं बरनी। सीदहिं बिप्र धेनु सुर धरनी।।

तब तब प्रभु धरि बिबिध सरीरा। हरहि कृपानिधि सज्जन पीरा।।


हम सब राममय हैं राममयता से ही अयोध्या में राममन्दिर बन रहा है परमात्मा भी हम लोगों के विग्रह रच देता है और स्वयं विराजमान हो जाता है


कहि सक न सारद सेष नारद सुनत पद पंकज गहे।

अस दीनबंधु कृपाल अपने


 भगत गुन निज मुख कहे॥

सिरु नाइ बारहिं बार चरनन्हि ब्रह्मपुर नारद गए।

ते धन्य तुलसीदास आस बिहाइ जे हरि रँग रँए॥


रावनारि जसु पावन गावहिं सुनहिं जे लोग।

राम भगति दृढ़ पावहिं बिनु बिराग जप जोग ll


दीप सिखा सम जुबति तन मन जनि होसि पतंग।

भजहि राम तजि काम मद करहि सदा सतसंग॥



तुलसीदास जी ने जहां भगवान् राम की वन्दना की वहां शिव को भी लिया

 क्योंकि उस समय शैव वैष्णव संघर्ष से हमारी वैचारिक शक्ति क्षीण हो रही थी


हम लोग भी यदि इस तरह से लोगों को उलझते देखें तो उन्हें सुलझाने का प्रयास करें 

समाज को अनुभव कराएं कि आप उनसे बीस हैं

ज्ञान ध्यान शक्ति भक्ति विचार व्यवहार प्रेम आत्मीयता में बीस हों तो 

इस देवभूमि को नर्क बनाने वालों को आपसे लगाव होगा

लेकिन दीनहीन न बनें अपने विचारों को मजबूत बनाएं

संगठन के काम हेतु समय भी हमें निकालना होगा

लखनऊ में 17 मई को एक कार्यक्रम है उसमें अधिक से अधिक लोग जाएं