प्रस्तुत है प्रयुयुत्सु आचार्य श्री ओम शंकर जी का आज दिनांक 14 मई 2022
का सदाचार संप्रेषण
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भारतवर्ष के इतिहास पर हम दृष्टि डालते हैं तो देखते हैं कि जब अध्यात्म और शौर्य दोनों अलग अलग राह पर चलने लगे परस्पर विद्वेष बढ़ने लगा विद्वानों में राजाओं में विद्वेष देखकर आम जनता में इसकी नकल होने लगी सुखसुविधाओं के लिये जाने अनजाने देशद्रोह के काम होने लगे तो बाहर की शक्तियां भारत से सबकुछ पाने के लिये लालायित हो गईं
पराक्रम से दूर होने पर वेद की ऋचाएं बोझ हो गईं
लेकिन अच्छी बात यह भी रही बीच बीच में समाजोन्मुखी जीवन जीने वाले महापुरुषों के जीवन आते गये जिन्होंने लोकसंस्कार का काम सबसे पहले किया
जो बार बार याद दिलाते रहे कि हम अपने को पहचानें
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने भी यही किया हेडगेवार जी चाहते थे कि कम से कम समय में समाज संस्कारित होकर अपने पैरों पर खड़ा हो जाए
संघ में भी तमाम उतार चढ़ाव आये
अब हम भगवान् राम के काल में आते हैं
दशरथ को समाज से मतलब नहीं था लेकिन विश्वामित्र को था विश्वामित्र ने दशरथ से सेना न मांगकर राम और लक्ष्मण मांगे उनका संस्कार करेंगे संस्कार का नतीजा था कि ताड़का को मारते समय यह नहीं देखा कि वो स्त्री है
बिस्वामित्र समय सुभ जानी। बोले अति सनेहमय बानी॥
उठहु राम भंजहु भवचापा। मेटहु तात जनक परितापा॥
यह सुनकर
सहजहिं चले सकल जग स्वामी। मत्त मंजु बर कुंजर गामी॥
चलत राम सब पुर नर नारी। पुलक पूरि तन भए सुखारी॥
सहजहिं चले वाला भाव संघ ने भी उत्पन्न करने की चेष्टा की आचार्य जी ने इसे व्यक्त करता हुआ एक कार्यकर्ता आशाशंकर जी का बहुत रोचक प्रसंग बताया
राष्ट्रसेवा का भाव अब जब सिर चढ़कर बोल रहा है तो संसार भी भारत को महत्त्वपूर्ण समझ रहा है
राम को आदर्श मानकर अपने संगठनों को हम लोगों ने उस प्रकार से रचने की चेष्टा की कि हमारे अन्दर रामत्व प्रविष्ट हो गया है
हनुमान जी के पूछने पर भगवान राम कहते हैं
कोसलेस दसरथ के जाए । हम पितु बचन मानि बन आए।।
नाम राम लछिमन दौउ भाई। संग नारि सुकुमारि सुहाई।।
इहाँ हरि निसिचर बैदेही। बिप्र फिरहिं हम खोजत तेही।।
आपन चरित कहा हम गाई। कहहु बिप्र निज कथा बुझाई।।
हनुमान जी पहचान गये
प्रभु पहिचानि परेउ गहि चरना। सो सुख उमा नहिं बरना।।
पुलकित तन मुख आव न बचना। देखत रुचिर बेष कै रचना।।
पुनि धीरजु धरि अस्तुति कीन्ही। हरष हृदयँ निज नाथहि चीन्ही।।
मोर न्याउ मैं पूछा साईं। तुम्ह पूछहु कस नर की नाईं।।
तव माया बस फिरउँ भुलाना। ता ते मैं नहिं प्रभु पहिचाना।।
राम और हनुमान की मैत्री अद्वितीय है
हम भी एक दूसरे को पहचानें अपना कर्तव्य न भूलें अपने बल को पहचानें हनुमान जी भी सदैव किसी भी तरह की समस्या को हल करते रहे
हम भी आत्मकर्मनिष्ठा आत्मशक्ति को अनदेखा न करें समाज में अपनी पहचान बनाएं