कर्म देश-हित के रहें, ईश्वर पर विश्वास।
भावपूर्ण अन्तःकरण, मनस् आत्मविश्वास। ।
अपनों पर विश्वास हो, वैरी पर हो दृष्टि ।
इसी तरह करते चलें, संगठना की सृष्टि ।।
निज चरित्र आदर्श हो, भटके के प्रति प्रेम।
प्रतिदिन ही करते रहो, सबका योग क्षेम। ।
भारत माँ के पूत हम , हम जगती के
मूल।
निर्वारेंगे फिर हमी , जग के उपजे शूल ।।
प्रस्तुत है समाकर्षिन् आचार्य श्री ओम शंकर जी का आज दिनांक 15 मई 2022
का सदाचार संप्रेषण
https://sadachar.yugbharti.in/
https://youtu.be/YzZRHAHbK1w
अपने देश में बारहवीं शताब्दी से साजिशों का घिनौना खेल चल रहा है l यूं तो साजिशें पहले भी हुई हैं लेकिन पहले के विवाद विकृत मानसिकताओं की भेंट नहीं चढ़े थे सीधे सीधे युद्ध होते थे विचारों, व्यवहारों के युद्ध होते थे बाहर से लुटेरे आते थे
यद्यपि हम संगठित नहीं थे लेकिन छली प्रपंची नहीं थे
छल और प्रपंच पश्चिम की देन है लेकिन फिर भी पश्चिमी विचार पश्चिमी आचार पश्चिमी व्यवहार हमें आकर्षित करता है
और इसी कारण हम अपने पर विश्वास नहीं करते
अरण्य कांड में
जब लक्ष्मण ने शूर्पणखा (जिसके नख छाज जैसे लम्बे चौड़े हों ) के नाक कान काट डाले तो वह रावण के पास गई
यहां विद्वान महात्मा चिन्तक तपस्वी समाज के पथ- प्रदर्शक तुलसीदास ने प्रपंचपूर्ण छलपूर्ण भाव से अद्भुत प्रस्तुतिकरण किया है
धुआं देखि खरदूषन केरा। जाइ सुपनखाँ रावन प्रेरा॥
बोली बचन क्रोध करि भारी। देस कोस कै सुरति बिसारी॥3॥
करसि पान सोवसि दिनु राती। सुधि नहिं तव सिर पर आराती॥
राज नीति बिनु धन बिनु धर्मा। हरिहि समर्पे बिनु सतकर्मा॥4॥
बिद्या बिनु बिबेक उपजाएँ। श्रम फल पढ़ें किएँ अरु पाएँ॥
संग तें जती कुमंत्र ते राजा। मान ते ग्यान पान तें लाजा॥5॥
प्रीति प्रनय बिनु मद ते गुनी। नासहिं बेगि नीति अस सुनी॥6॥
रिपु रुज पावक पाप प्रभु अहि गनिअ न छोट करि।
अस कहि बिबिध बिलाप करि लागी रोदन करन॥21 क॥
सभा माझ परि ब्याकुल बहु प्रकार कह रोइ।
तोहि जिअत दसकंधर मोरि कि असि गति होइ॥21 ख॥
सुनत सभासद उठे अकुलाई। समुझाई गहि बाँह उठाई॥
कह लंकेस कहसि निज बाता। केइँ तव नासा कान निपाता॥1॥
अवध नृपति दसरथ के जाए। पुरुष सिंघ बन खेलन आए॥
समुझि परी मोहि उन्ह कै करनी। रहित निसाचर करिहहिं धरनी॥2॥
जिन्ह कर भुजबल पाइ दसानन। अभय भए बिचरत मुनि कानन॥
देखत बालक काल समाना। परम धीर धन्वी गुन नाना॥3॥
अतुलित बल प्रताप द्वौ भ्राता। खल बध रत सुर मुनि सुखदाता॥
सोभा धाम राम अस नामा। तिन्ह के संग नारि एक स्यामा॥4॥
रूप रासि बिधि नारि सँवारी। रति सत कोटि तासु बलिहारी॥
तासु अनुज काटे श्रुति नासा। सुनि तव भगिनि करहिं परिहासा॥5॥
...रहित निसाचर करिहहिं धरनी ....
आज भी बहुत से लोगों को लग रहा है कि यह वातावरण निशाचर रहित हो जायेगा इसलिये वो व्याकुल हैं हमें छल बल समझने की जरूरत है
उत्तेजित न हों होश के साथ जोश रखें विचार के साथ व्यवहार हो
अच्छे लोगों को साथ मिलाते चलें
समय व्यर्थ न करें लेखन आदि में समय लगाएं संगठन को समय दें समाज -गंगा में अपना योगदान दें
इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने केजरीवाल सच्चाई या साजिश पुस्तक (लेखक :संदीप देव कपोत बुक्स )की चर्चा की
विद्यालय में सस्ते में कौन ईंट देता था भैया ज्योति भैया प्रकाश शर्मा आदि का उल्लेख क्यों हुआ जानने के लिये सुनें