प्रस्तुत है विष्टपहारिन् आचार्य श्री ओम शंकर जी का आज दिनांक 18 मई 2022
का सदाचार संप्रेषण
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https://youtu.be/YzZRHAHbK1w
जो सिद्धयोगी अपनी किन्हीं साधनाओं के स्खलन के कारण या उनकी न्यूनता के कारण या अस्तव्यस्तता के कारण अपनी साधना को सिद्धि तक नहीं पहुंचा पाते तो वो एक जन्म लेते हैं और उनका जन्म एक उच्च संभ्रान्त कुल में होता है
ऐसे ही एक सिद्धयोगी महामानव अपने दीनदयाल विद्यालय के पुरोधा बैरिस्टर साहब श्री नरेन्द्र जीत सिंह जी का जन्म पंजाब के एक गांव भवन में 18 मई 1911 को रायबहादुर विक्रमाजीत सिंह(आम आदमी उन्हें मुकदमा जीत सिंह कहते थे )के पुत्र के रूप में हुआ
दीनदयाल विद्यालय के दूसरे पुरोधा पं शिव शरण शर्मा का घर आपके पड़ोस में था
रायबहादुर विक्रमाजीत जी व्यस्त रहते थे लेकिन अपने बच्चों पर बहुत ध्यान देते थे अत्यधिक संपन्न होने के बाद भी बच्चे स्नान के लिये कुंए से स्वयं ही पानी निकालें इस पर अडिग रहते थे
किसी समय बैरिस्टर साहब के पैर टेढ़े थे जब उनके मामा जी ने मन्दिर की सीढ़ियों से उन्हें उतरवा दिया तो उनके पैर सही हो गये
आपने हाईस्कूल आर्ट साइड से किया और इंटरमीडिएट साइंस से करते हुए पोजीशन हासिल की और बी एस सी में फर्स्ट क्लास से पास हुए
जम्मू कश्मीर राज्य के दीवान बद्रीनाथ जी की पुत्री सुशीला जी (बूजी ) से उनका विवाह 1935 में हुआ
निस्पृह संन्यासी के रूप में उन्होंने राजयोग का अभ्यास किया
अन्तिम समय में उन्होंने विशंभर नाथ द्विवेदी जी से श्रीमद्भागवत् का दसवां अध्याय सुना
विद्यालय के यश और समाज में हम लोगों की पहचान के मूल में बैरिस्टर जी हैं
उन्होंने अपनी साधना को सामाजिकता में बिखेर कर सिद्धि तक पहुंचा दिया
त्रिवेणी की कौन सी तीन वेणियों से विद्यालय चर्चित हुआ कल लखनऊ कार्यक्रम के बारे में आचार्य जी ने क्या बताया कथा लेकर कौन मिलता है व्यथा लेकर कौन मिलता है जानने के लिये सुनें