इसमें अतिशयोक्ति नहीं कि इन सदाचार संप्रेषणों से हमें दिन भर की ऊर्जा मिलती रहती है प्रस्तुत है क्षेमंकर आचार्य श्री ओम शंकर जी का आज दिनांक 19 मई 2022 का इसी तरह का एक और सदाचार संप्रेषण
भाव के साथ भाषा का संयोग भाषा को प्रभावकारिणी बनाता है मनुष्य की भाषा ही उसके संबन्धों को जोड़ती औऱ तोड़ती है
भाव विचार अध्ययन अनुभव और साधना भाषा को अद्भुत प्रभाव छोड़ने वाला बना देते हैं
भाषा का मूल आदिस्वर ॐ है ॐ का उच्चारण करने से शरीर में कई तरह के परिवर्तन होते हैं
भाषा के बिना ज्ञान हमारे पास नहीं पहुंच सकता
वंशानुक्रम को परिभाषित करते हुए आचार्य जी ने बताया वंशानुक्रम में संबन्धों के नाम होते हैं भारतवर्ष में तो अनन्त नाम हैं इस नाम रूपात्मक जगत् में एक रूप के अनेक नाम हैं एक ही व्यक्ति किसी का चाचा किसी का पुत्र किसी का पिता किसी का मामा हो सकता है
और यह भी कि यह मेरा खेत है यह मेरा घर है लेकिन जब हम अपने संबन्ध किन्हीं कुंठाओं के कारण तोड़ लेते हैं तो हम अकेले हो जाते हैं
साधनारत मनुष्य अकेला नहीं रहता है
अकेला मनुष्य तमाम संसाधनों के होने पर भी खालीपन का अनुभव करता है
जितने अधिक लोग हम लोगों
के साथ संयुत होंगे उतना ही हमें आनन्द मिलेगा स्व को पहचानने की चेष्टा करें
संबन्धों को प्रगाढ़ बनाने का एक और मौका हमें 21 मई 2022 को विद्यालय में होने जा रहे कार्यक्रम के माध्यम से मिल रहा है जिसमें लखनऊ से भैया प्रदीप वाजपेयी और प्रयागराज से श्री अरिंदम जी के आने की सूचना है
जब आप बहुत पस्त हों तो शवासन या अनुलोम विलोम अवश्य करें
पुराना शरीर बोझिल होने लगता है इसीलिये बहुत से ऋषि साधक परकाया प्रवेश करते हैं
महाभारत के शांति पर्व में वर्णन है कि सुलभा नामक विदुषी योगबल की शक्ति से राजा जनक के शरीर में प्रविष्ट कर विद्वानों से शास्त्रार्थ करने लगी थी
प्रसिद्ध तांत्रिक कापालिक भूपेंद्र आनंद के अनुसार उनके गुरु योगानंद सरस्वती ने उन्हें एक बार परकाया प्रवेश का साक्षात दर्शन कराया था
नाथ संप्रदाय के आदि गुरु मुनिराज मछन्दरनाथ के विषय में भी कहा जाता है कि उन्हें परकाया प्रवेश की सिद्धि प्राप्त थी सूक्ष्म शरीर से वे अपनी इच्छानुसार गमनागमन विभिन्न शरीरों में करते थे एकबार अपने शिष्य गोरखनाथ को स्थूल शरीर की सुरक्षा का भार सौंपकर एक मृत राजा के शरीर में उन्होंने सूक्ष्म शरीर से प्रवेश किया था
इसका सबसे प्रचलित उदाहरण मंडन मिश्र की पत्नी द्वारा आदि शंकराचार्य से पूछे प्रश्न का उत्तर ढूंढ़ने के लिए उनके द्वारा परकाया प्रवेश की घटना में मिलता है