प्रस्तुत है आगमवृद्ध आचार्य श्री ओम शंकर जी का आज दिनांक 21 मई 2022
का सदाचार संप्रेषण
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https://youtu.be/YzZRHAHbK1w
नित्य प्रातः आचार्य जी की वाणी से प्रभावित होकर हम लोग सद्गुणों को अपने जीवन में उतारने का प्रयास करते हैं भाव विचार और क्रिया के सामञ्जस्य के कारण ही आचार्य जी की वाणी प्रभावकारिणी होती है
हमें चिन्तन मनन और लेखन पर ध्यान देना चाहिये प्रत्येक शब्द का मूल्य है प्रत्येक विचार महत्त्वपूर्ण है लेकिन यह मनुष्य के चिन्तन और विश्लेषण का विषय है कि कौन सा विचार कहां महत्त्वपूर्ण है
उत्तर कांड में
रामराज्य का वर्णन हुआ है रामराज्य कैसा है कि
अल्पमृत्यु नहिं कवनिउ पीरा। सब सुंदर सब बिरुज सरीरा॥
नहिं दरिद्र कोउ दुखी न दीना। नहिं कोउ अबुध न लच्छन हीना l l
एक दोहा अत्यधिक रोचक और मोहक है
राम राज नभगेस सुनु सचराचर जग माहिं।
काल कर्म सुभाव गुन कृत दु:ख काहुहि नाहिं॥21
हम काल, कर्म, गुण, दोष और स्वभाव से उत्पन्न दुःख से दुःखी होते रहते हैं जहां जो कुछ है उसे परमात्मा का प्रसाद समझना चाहिये जो हमारे हिस्से का है उसमें संतुष्ट रहना चाहिये हमें परमात्मा का चिन्तन मनन करना चाहिये अगर हम अपनी इन्द्रियों से बाहर नहीं जा पाते तो हम अपरिमित अविनाशी परमात्मा का महत्त्व नहीं समझ सकते
हमें इन्द्रियों का जब आधार मिल जाता है तब इन्द्रियां संसार से बाहर सोचने में सक्षम होती हैं
सत्संगति से क्षुदा पिपासा आदि इच्छाएं शान्त रहती हैं
बिनु सतसंग बिबेक न होई। राम कृपा बिनु सुलभ न सोई॥
सतसंगत मुद मंगल मूला। सोई फल सिधि सब साधन फूला॥4॥
हमें अपने सूत्र वाक्य
" प्रचण्ड तेजोमय शारीरिक बल, प्रबल आत्मविश्वास युक्त बौद्धिक क्षमता एवं निस्सीम भाव सम्पन्ना मनः शक्ति का अर्जन कर अपने जीवन को निःस्पृह भाव से भारत माता के चरणों में अर्पित करना ही हमारा परम साध्य है l ",
वयं राष्ट्रे जागृयाम पुरोहिताः,राष्ट्र -निष्ठा से परिपूर्ण समाजोन्मुखी व्यक्तित्व का उत्कर्ष
आदि याद रखने चाहिये
किसी व्यक्ति की कमियों को हमें दूर करने का प्रयास तो करना चाहिये लेकिन उसमें असफल होने पर हताश नहीं होना चाहिये
अन्यथा हमारे ही सद्गुणों का ह्रास होगा
हम अपने संस्कारों को नई पीढ़ी को अवश्य दें
इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने भैया सौरभ राय, भैया पुनीत श्रीवास्तव, भैया मोहन का नाम क्यों लिया
वर्तमान प्रधानाचार्य जी ने आचार्य जी से क्या निवेदन किया है जानने के लिये सुनें