प्रस्तुत है अमानिन् आचार्य श्री ओम शंकर जी का आज दिनांक 25 मई 2022
का सदाचार संप्रेषण
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https://youtu.be/YzZRHAHbK1w
इस समय एक बहुत भयानक वैचारिक चक्रवात जिसका केन्द्र भारत है चल रहा है
हम लोगों को गहन चिन्तन करना चाहिये कि हजारों वर्षों से भारत ही क्यों आकर्षण का केन्द्र रहा है जिज्ञासु तो भारत की ओर आकर्षित हुए ही दुष्ट लोभी लालची भी आये
326 ईसा पूर्व सिकन्दर का आक्रमण हो या 636ईस्वी में खलीफा उमर के नेतृत्व में थाने के निकट भारतीय सीमाओं पर झपट्टा मारा गया हो या मुहम्मद बिन कासिम के हाथों राजा दाहिर की पराजय हो आदि
लेकिन हम कहीं गये तो किसी के बुलावे पर शान्ति का संदेश मानवता के उपदेश आदि देने गये
शिक्षा की दुर्दशा करने वाले कुचक्र चले जिससे यह भय और भ्रम उत्पन्न हुआ कि जीविका के लिये ऐसी शिक्षा सही है और अंग्रेजी महत्त्वपूर्ण है आदि आदि
भौतिकता की आंधी में भगवान राम और भगवान कृष्ण अदृश्य हो गये वेद काल्पनिक हो गये
हमारा खानपान पूजा व्यवस्था शिक्षा सब बदलाव की भेंट चढ़ गये
लाखों ग्रंथ नष्ट कर दिये गये लेकिन उसके बाद भी गीता मानस उपनिषद् पुराण भागवत हमारे पास रहे
विश्व का सबसे बड़ा और वैज्ञानिक समय गणना तन्त्र (ऋषि मुनियों द्वारा किया गया अनुसंधान)
■ काष्ठा = सेकंड का 34000 वाँ भाग
■ 1 त्रुटि = सेकंड का 300 वाँ भाग
■ 2 त्रुटि = 1 लव ,
■ 1 लव = 1 क्षण
■ 30 क्षण = 1 विपल ,
■ 60 विपल = 1 पल
■ 60 पल = 1 घड़ी (24 मिनट ) ,
■ 2.5 घड़ी = 1 होरा (घंटा )
■3 होरा=1प्रहर व 8 प्रहर 1 दिवस (वार)
■ 24 होरा = 1 दिवस (दिन या वार) ,
■ 7 दिवस = 1 सप्ताह
■ 4 सप्ताह = 1 माह ,
■ 2 माह = 1 ऋतु
■ 6 ऋतु = 1 वर्ष ,
■ 100 वर्ष = 1 शताब्दी
■ 10 शताब्दी = 1 सहस्राब्दी ,
■ 432 सहस्राब्दी = 1 युग
■ 2 युग = 1 द्वापर युग ,
■ 3 युग = 1 त्रेता युग ,
■ 4 युग = सतयुग
■ सतयुग + त्रेतायुग + द्वापरयुग + कलियुग = 1 महायुग
■ 72 महायुग = मनवन्तर ,
■ 1000 महायुग = 1 कल्प
■ 1 नित्य प्रलय = 1 महायुग (धरती पर जीवन अन्त और फिर आरम्भ )
■ 1 नैमितिका प्रलय = 1 कल्प ।(देवों का अन्त और जन्म )
■ महाप्रलय = 730 कल्प ।(ब्रह्मा का अन्त और जन्म )
हमारे पास ऋषियों मुनियों के अद्भुत अनुसंधानों का भंडार है
हमें गर्व करना चाहिये कि हम ऐसे हैं
हम शरीरांतरण करते हैं हम ऐसे पूर्वजों के अनुयायी हैं
इसके बाद भी दुःखी परेशान हों तो इसका अर्थ है कि हम पूजा उपासना ध्यान चिन्तन मनन से दूर हैं
पूजा चिन्तन ध्यान मनन स्वाध्याय से हम विश्वासी
उत्साही क्रियाशील श्वोवसीय हो जाते हैं
गांव में अभी भी एक वर्ग इस प्रकार का है जो दुःख में भी सुख की अनुभूति कर लेता है
गांव की बाह्य प्रकृति के साथ साथ अन्तःप्रकृति भी गुणों से भरपूर है
हमारा कर्तव्य है कि हम अगली पीढ़ी को संस्कारित करें उसमें आत्मबोध पैदा करें
किस तरह के शिक्षण संस्थानों से हमें दूर रहना चाहिये भैया अमित गुप्त का नाम कैसे आया बैरिस्टर साहब ने गीता कहां समझी आदि जानने के लिये सुनें