26.5.22

आचार्य श्री ओम शंकर जी का दिनांक 26 मई 2022 का सदाचार संप्रेषण

 मैं हूँ विश्वास निरीहों की उच्छ् वासों का

अम्बर में अटकी दृष्टि दिशाओं श्वासों का

उर में कराल कालाग्नि पचाने की क्षमता

आँसू अनुताप कराहों पर पूरी ममता ।॥३।॥। ( मैं विद्रोही कविता के अंश )



प्रस्तुत है  तरस्विन् आचार्य श्री ओम शंकर जी का आज दिनांक 26 मई 2022

  का  सदाचार संप्रेषण 




https://sadachar.yugbharti.in/


https://youtu.be/YzZRHAHbK1w


संसार विकारों और विचारों का मिला जुला स्वरूप है एक सामान्य व्यक्ति भी यदि श्रीमद्भगवद्गीता की ओर उन्मुख हो जाये तो उसे शक्ति मिलती है बुद्धि विकसित हो जाती है और संसार में रहते हुए समस्याओं से जूझने की क्षमता मिलती है 

तीसरे अध्याय से


श्रेयान्स्वधर्मो विगुणः परधर्मात्स्वनुष्ठितात्।


स्वधर्मे निधनं श्रेयः परधर्मो भयावहः।।3.35।।


अच्छी तरह आचरण में लाये हुए दूसरे के धर्म से गुणों की कमी वाला अपना धर्म श्रेष्ठ है। अपने धर्म में तो मरना भी कल्याण करने वाला है और परधर्म भय  देने वाला है।

स्व विस्तार ले लेता है तो पूरी वसुधा ही कुटुम्ब हो जाती है

यह भाव का विस्तार है लेकिन जब तक भाव का विस्तार नहीं होता तब तक 

हमारे छोटे छोटे स्वधर्म भी होते हैं जैसे विद्यार्थी के रूप में हमारा धर्म है अध्ययन मनन स्वाध्याय चिन्तन लेखन

शिक्षक के रूप में प्रबन्धकारिणी समिति के सदस्यों के प्रति अभिभाव्कों के प्रति कर्मचारियों के प्रति उचित व्यवहार शिक्षक का स्वधर्म है

गृहस्थ धर्म में तो धर्म के बहुत से मुख हो जाते हैं


काम एष क्रोध एष रजोगुणसमुद्भवः।


महाशनो महापाप्मा विद्ध्येनमिह वैरिणम्।।3.37।।


धूमेनाव्रियते वह्निर्यथाऽऽदर्शो मलेन च।


यथोल्बेनावृतो गर्भस्तथा तेनेदमावृतम्।।3.38।।



आवृतं ज्ञानमेतेन ज्ञानिनो नित्यवैरिणा।


कामरूपेण कौन्तेय दुष्पूरेणानलेन च।।3.39।।


भगवान् बोले -

 रजोगुणसे उत्पन्न हुआ  यह काम ही क्रोध  है। यह बहुत पेटू और महापापी है।

 इस विषय में  तुम इसको  शत्रु समझो


यह काम किस प्रकार शत्रु है इसके लिये निम्नांकित दृष्टान्त  हैं

 जैसे प्रकाश वाली अग्नि अपने साथ उत्पन्न हुए अन्धकार रूपी धूएँ से और शीशा धूल से आच्छादित हो जाता है तथा जैसे गर्भ अपने आवरणरूप जेर से आच्छादित होता है वैसे ही उस काम से यह ज्ञान ढका हुआ है।


इस अग्नि के समान कभी तृप्त न होने वाले और विवेकियों के नित्य शत्रु इस काम के द्वारा मनुष्य का विवेक ढका हुआ है।



इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने श्रीरामकृष्णलीलाप्रसंग पुस्तक की चर्चा की

श्री अशोक मिश्र जी कौन हैं

भैया संजय गर्ग जी भैया विनय अग्रवाल जी का नाम किस संदर्भ में आया जानने के लिये सुनें