न कर्मणामनारम्भान्नैष्कर्म्यं पुरुषोऽश्नुते।
न च संन्यसनादेव सिद्धिं समधिगच्छति।।3.4।।
प्रस्तुत है सचेतस् आचार्य श्री ओम शंकर जी का आज दिनांक 28 मई 2022
का सदाचार संप्रेषण
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हम अच्छा औऱ उपयोगी पढ़ें अच्छा और उपयोगी सुनें और पढ़ने सुनने के पश्चात् उसे गुनकर विचारों के रूप में प्रकट करें विचारों का प्रकटीकरण अत्यन्त उपयोगी है लेकिन उसके लिये विचारों का संग्रह तो आवश्यक है ही
अपनी प्रतिभा व्यर्थ न हो इसके लिये अपनी प्रतिभा के माध्यम से संसार को समझना आवश्यक है
गीता के कर्मयोग सिद्धान्त में
नियतं कुरु कर्म त्वं कर्म ज्यायो ह्यकर्मणः।
शरीरयात्रापि च ते न प्रसिद्ध्येदकर्मणः।।3.8।।
यज्ञार्थात्कर्मणोऽन्यत्र लोकोऽयं कर्मबन्धनः।
तदर्थं कर्म कौन्तेय मुक्तसंगः समाचर।।3.9।।
सहयज्ञाः प्रजाः सृष्ट्वा पुरोवाच प्रजापतिः।
अनेन प्रसविष्यध्वमेष वोऽस्त्विष्टकामधुक्।।3.10।।
तुम अपने नियत कर्म को करो क्योंकि अकर्म से कर्म श्रेष्ठ है, तुम्हारे अकर्मयुक्त होने से तुम्हारा शरीर निर्वाह भी सिद्ध नहीं होगा
यज्ञ हेतु किये हुए कर्म के अलावा अन्य कर्म में प्रवृत्त पुरुष कर्मों द्वारा बंध जाता है अतः आसक्ति को त्यागकर यज्ञीय कर्म का ठीक प्रकार से आचरण करो।।
सृष्टि के रचयिता ने सृष्टि के प्रारम्भ में यज्ञ सहित प्रजा का निर्माण कर कहा इस यज्ञ से तुम वृद्धि को प्राप्त हो और यह यज्ञ तुम्हारे लिये इच्छित कामनाओं को पूर्ण करने वाला होवे
भारत त्याग बलिदान शौर्य शक्ति का पुंज है l आचार्य जी बार बार शौर्य प्रमंडित अध्यात्म पर बल देते हैं क्यों कि शौर्य रहित अध्यात्म की अति के कारण हम अपना कर्तव्य भूल गये इस अकर्म्यणता के कारण काशी मथुरा अयोध्या दुर्दशा को प्राप्त हो गये उस समय हमारा कर्तव्य था कि जो युद्ध कर रहे थे उनके साथ हम खड़े होते
1992 में रामजन्म भूमि की मुक्ति का द्वार खुल गया था उस समय आचार्य जी विश्व हिन्दू परिषद में सक्रिय थे और उन्होंने ज्ञानवापी पर एक अंक निकाला था
राष्ट्राय स्वाहा, इदं राष्ट्राय इदं न मम” पूज्य श्री गुरूजी द्वारा राष्ट्र को समर्पित इस मंत्र का ध्यान करते हुए हम लोगों को जाग्रत करें राष्ट्र के प्रति अपना कर्तव्य न भूलें
उथल पुथल के समय अपने संगठन का स्वरूप दिखायें
झूठइ लेना झूठइ देना। झूठइ भोजन झूठ चवेना।
बोलहिं मधुर बचन जिमि मोरा। खाइ महा अति हृदय कठोरा।
दृष्ट मनुष्य का लेने देन भोजन से लेकर उसकी कही गई बातें सब झूठ होती हैं। क्योंकि जिस तरह मनमोहक मोर अपनी मीठी बोली के अलावा कठोर हृदय का होता है, जो जहरीले सांपों को अपना खाना बनाता है। इस प्रकार जो अत्यंत मधुर और अच्छी-अच्छी बातें करते हैं वह हृदय से बड़े ही क्रूर होते हैं
इसी तरह स्वार्थवादी दलों से बचें जिनके लोगों की भाषा से हम भ्रमित न हों
नित्य अपने शरीर को अपने परिवार को अपने परिवेश को सिद्ध अवस्था में रखें
अपने शरीर के माध्यम से धर्म को सिद्ध करें
हमें कार्यक्रम भी करने चाहिये जिनसे हमें शक्ति ऊर्जा उत्साह मिलता है
हमारा उद्देश्य है
राष्ट्र - निष्ठा से परिपूर्ण समाजोन्मुखी व्यक्तित्व का उत्कर्ष
इसे न भूलें