प्रस्तुत है विगतकल्मष आचार्य श्री ओम शंकर जी का आज दिनांक 3 मई 2022
का सदाचार संप्रेषण
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https://youtu.be/YzZRHAHbK1w
हम श्रवणोत्सुक समूह के लिये आचार्य जी ने परामर्श दिया कि इस संप्रेषण में जो कुछ बोला जा रहा है उस शक्ति की अनुभूति का प्रयास करें
वर्तमान में जीवित रहने का उत्साह हम सभी का है वर्तमान में जीवित रहते हुए संसार के साथ सामञ्जस्य स्थापित करते हुए संसार का आनन्द लेते हुए शौर्य शक्ति के साथ आगे बढ़ना औऱ ताप तप्त को ऐसी छाया प्रदान करना कि कुछ देर के लिये उस छाया में वो शान्त होकर बैठ सके किसी की व्याकुलता शान्त कर दी तो हमने उसे छाया दे दी यही संसार में रहते हुए भक्ति है
गीता के बारहवें अध्याय भक्ति योग में बीस छन्द हैं
संनियम्येन्द्रियग्रामं सर्वत्र समबुद्धयः।
ते प्राप्नुवन्ति मामेव सर्वभूतहिते रताः।।12.4
इन्द्रिय समूह को ठीक प्रकार से नियमित करके, सब जगह समभाव वाले, भूतमात्र के हित में रत वे भक्त मुझे ही प्राप्त होते हैं।।
अरण्य कांड में
मूलं धर्मतरोर्विवेकजलधेः पूर्णेन्दुमानन्ददं
वैराग्याम्बुजभास्करं ह्यघघनध्वान्तापहं तापहम्।
मोहाम्भोधरपूगपाटनविधौ स्वःसम्भवं शङ्करं
वन्दे ब्रह्मकुलं कलंकशमनं श्रीरामभूपप्रियम्।।1।।
और दूसरे छन्द में राम का स्वरूप देखते ही बनता है
सान्द्रानन्दपयोदसौभगतनुं पीताम्बरं सुन्दरं
पाणौ बाणशरासनं कटिलसत्तूणीरभारं वरम्
राजीवायतलोचनं धृतजटाजूटेन संशोभितं
सीतालक्ष्मणसंयुतं पथिगतं रामाभिरामं भजे।।2।l
जिनका शरीर मेघों के समान सुंदर एवं आनंदघन है, जो सुंदर पीत वस्त्र धारण किए हैं, जिनके हाथों में बाण और धनुष हैं, कमर उत्तम तरकस के भार से सुशोभित है, कमल तुल्य विशाल आंखें हैं और माथे पर जटाजूट धारण किए हैं, उन अत्यन्त शोभायमान सीता जी और लक्ष्मण जी सहित मार्ग में चलते हुए आनंद देने वाले श्री राम जी को मैं भजता हूँ॥2||
हाथ में धनुषबाण इस भाव का हमें वरण करना चाहिये
त्रिकालदर्शी अत्रि के आश्रम में
* प्रभु आसन आसीन भरि लोचन सोभा निरखि।
मुनिबर परम प्रबीन जोरि पानि अस्तुति करत॥3॥
भावार्थ:-प्रभु आसन पर विराजमान हैं। नेत्र भरकर उनकी शोभा देखकर परम प्रवीण मुनि श्रेष्ठ हाथ जोड़कर स्तुति करने लगे॥3॥
*नमामि भक्त वत्सलं। कृपालु शील कोमलं॥
भजामि ते पदांबुजं। अकामिनां स्वधामदं॥1॥
भावार्थ:-हे भक्त वत्सल! हे कृपालु! हे कोमल स्वभाव वाले! मैं आपको नमस्कार करता हूँ। निष्काम पुरुषों को अपना परमधाम देने वाले आपके चरण कमलों को मैं भजता हूँ॥1॥
*निकाम श्याम सुंदरं। भवांबुनाथ मंदरं॥
प्रफुल्ल कंज लोचनं। मदादि दोष मोचनं॥2॥
भावार्थ:-आप नितान्त सुंदर श्याम, संसार (आवागमन) रूपी समुद्र को मथने के लिए मंदराचल रूप, फूले हुए कमल के समान नेत्रों वाले और मद आदि दोषों से छुड़ाने वाले हैं॥2॥
*प्रलंब बाहु विक्रमं। प्रभोऽप्रमेय वैभवं॥
निषंग चाप सायकं। धरं त्रिलोक नायकं॥3॥
भावार्थ:-हे प्रभो! आपकी लंबी भुजाओं का पराक्रम और आपका ऐश्वर्य अप्रमेय (बुद्धि के परे अथवा असीम) है। आप तरकस और धनुष-बाण धारण करने वाले तीनों लोकों के स्वामी,॥3॥
( shriramcharitmanas. in से साभार )
इन स्तुतियों को हमें याद करना चाहिये और अन्य लोगों को भी सुनाना चाहिये
भक्ति और शौर्य का संयोग गीता और मानस दोनों में है यदि हम इनका अवगाहन करेंगे तो हमारे अन्दर इतना शक्ति सामर्थ्य आयेगा कि हम उदाहरण बन जायेंगे