प्रस्तुत है प्रदातृ आचार्य श्री ओम शंकर जी का आज दिनांक 4 मई 2022
का सदाचार संप्रेषण
https://sadachar.yugbharti.in/
https://youtu.be/YzZRHAHbK1w
आचार्य जी जब भी हमें गीता और मानस का संदर्भ देते हैं तो उनका मूल उद्देश्य यह रहता है हम लोग अपने कार्य और व्यवहार में लगे रहते हुए भी इन सहज प्राप्य ग्रंथों का अवगाहन करें और इनके प्रति हमारा आकर्षण हो
अत्यधिक विषम परिस्थितियों में इस देश के ऋषियों कवियों संतों आदि ने बार बार हम लोगों को आत्मबल दिया है इसी आत्मबल के भरोसे आज भी हम हैं किसी अन्य नाम रूप में हम परिवर्तित नहीं हुए मूल रूप से आज भी हम वही हैं
दृढ़ विश्वास के साथ हम कहते हैं कि प्रलय तक भारतवर्ष भारतवर्ष ही रहेगा
स्वयं स्वस्थ रहते हुए पारिवारिक रूप से समृद्ध रहते हुए सुसंस्कृत समाज का हिस्सा बनते हुए जब सर्वत्र हमारा प्रभाव पहुंच जाता है तो कहा जाता है कि हम सृष्टि के संरक्षक हैं
यह यात्रा सतत चलती रहती है
यूरोपीय यात्रा के दूसरे दिन मा प्रधानमन्त्री मोदी के कोपनहेगन में दिये भाषण का संदर्भ देते हुए आचार्य जी ने बताया कि विश्व को भारतीय जीवनदर्शन अपनाना ही होगा
यही दर्शन संपूर्ण विश्व को प्राणधारा देने वाला है
विल्सन, ग्रिफिथ, मैक्समूलर आदि द्वारा वेदों में किये गये घालमेल से सामान्य जनमानस गलत धारणाएं न बना ले तो उसे जागरूक करने के लिये महर्षि दयानन्द ने *ऋग्वेदादिभाष्यभूमिका*
लिखी
ताकि यह पता चले कि वास्तव में वेदों में क्या है
ऋषि दयानन्द ने वेदों के अर्थ रूपी ताले को खोलने के लिए हमें कुंजी रूप में ‘ऋग्वेदादिभाष्यभूमिका’ प्रदान की
हम भारतीयों को अपने पर विश्वास करना ही होगा
ज्ञान के आधार पर ऋषि दयानन्द भक्ति के आधार पर रामकृष्ण परमहंस भक्ति और ज्ञान के आधार पर स्वामी विवेकानन्द उस समय दहाड़ते रहे जब देश में भुखमरी अशिक्षा अकाल अज्ञान आदि विकार थे
विकार के पाचन के लिये यदि विचार उद्यत नहीं होता तो विकार उद्धत हो जायेगा
विकार को समाप्त करने के लिये भगवान् राम भी उद्यत हुए
निसिचर हीन करउँ महि भुज उठाइ पन कीन्ह।
सकल मुनिन्ह के आश्रमन्हि जाइ जाइ सुख दीन्ह॥9॥
भगवान् रामजी ने भुजा उठाकर प्रण किया कि मैं मही अर्थात् पृथ्वी को राक्षसों से रहित कर दूँगा। फिर समस्त मुनियों के आश्रमों में जा जाकर उनको (दर्शन एवं सम्भाषण का) सुख दिया॥9॥
आचार्य जी ने रामजप का महत्त्व बताया
आचार्य जी ने बताया कि आत्ममुक्ति जगत के हित के लिये है
आत्मनो मोक्षार्थं जगद्धिताय च ( स्वयं के मोक्ष के लिए तथा जगत के कल्याण के लिए), ऋग्वेद का एक श्लोक है। स्वामी विवेकानन्द प्रायः इस श्लोक को उद्धृत करते रहते थे और बाद में यह वाक्यांश रामकृष्ण मिशन का ध्येयवाक्य बनाया गया।