पुनरपि जननं पुनरपि मरणं,
पुनरपि जननी जठरे शयनम्।
इह संसारे बहुदुस्तारे,
कृपयाऽपारे पाहि मुरारे॥21॥
प्रस्तुत है अवृथार्थ आचार्य श्री ओम शंकर जी का आज दिनांक 30 मई 2022
का सदाचार संप्रेषण
https://sadachar.yugbharti.in/
https://youtu.be/YzZRHAHbK1w
ये सदाचार संप्रेषण हम लोगों को प्रेरित करने, हमें उत्साह से लबरेज करने के लिये शौर्य प्रमंडित अध्यात्म के साथ आगे चलने के लिये सांसारिक समस्याओं से निपटने के लिये होते हैं
नई पीढ़ी को प्रेरित करके पुरानी पीढ़ी आनन्दित होती है
रिले-रेस की बैटन जिसे एक धावक टीम के दूसरे धावक को थमाता है की तरह हम भी इस बैटन को नई पीढ़ी को देकर आनंदित होवें
संसार बहुत विचित्र है जहां जीवन के दोनों पहलू सुख और दुःख दिखते हैं यहां दोष भी हैं गुण भी हैं अच्छे बुरे सिद्धान्तों से पुस्तकें पटी हुई हैं ज्ञान अनन्त है संसार की रचना और समापन चलता रहता है जब हमें संसारत्व की अनुभूति होती है तो इस तरह संसार-सागर में डूबने पर हम व्याकुल हो जाते हैं और जरा सा भी तटस्थ होना चाहें तो इसके लिये ध्यान धारणा साधना और भक्ति भाव में रमना आवश्यक है
अन्यथा
अङ्गं गलितं पलितं मुण्डं दशनविहीनं जतं तुण्डम् ।
वृद्धो याति गृहीत्वा दण्डं तदपि न मुञ्चत्याशापिण्डम् ॥ १५ ॥
इन संप्रेषणों से हमें उत्साह के साथ शान्ति भी मिलती है जब हमारे सामने शारीरिक पारिवारिक मानसिक सामाजिक समस्याएं आती हैं तो हम व्याकुल नहीं होते हैं
हम अपनी शक्तियों की अनुभूति करके उन्हें समाहारित करके परमात्मा को अर्पित नहीं करेंगे तो बेचारगी बहुत आयेगी
बहुत सी लालसाओं को लेकर संसार त्यागने पर लालसाओं में और वृद्धि हो जाती है इसलिये हमें लालसाओं को समाप्त करने का प्रयास करना चाहिये
इसके लिये आचार्य जी ने उत्तरकांड में दोहा 35 से दोहा 42 के बीच का भाग पढ़ने का परामर्श दिया
सनकादिक बिधि लोक सिधाए। भ्रातन्ह राम चरन सिर नाए॥
पूछत प्रभुहि सकल सकुचाहीं। चितवहिं सब मारुतसुत पाहीं॥1॥
सुनी चहहिं प्रभु मुख कै बानी। जो सुनि होइ सकल भ्रम हानी॥
अंतरजामी प्रभु सभ जाना। बूझत कहहु काह हनुमाना॥2॥
जोरि पानि कह तब हनुमंता। सुनहु दीनदयाल भगवंता॥
नाथ भरत कछु पूँछन चहहीं। प्रस्न करत मन सकुचत अहहीं॥3॥
....
जीवनमुक्त ब्रह्मपर चरित सुनहिं तजि ध्यान।
जे हरि कथाँ न करहिं रति तिन्ह के हिय पाषान॥42॥
इनकी बहुत अच्छी व्याख्या करते हुए आचार्य जी ने बताया कि जब हमें अनुभूतिजन्य विश्वास हो जाता है तो हमारा ज्ञान सुदृढ़ होने लगता है आत्मविश्वास में वृद्धि हो जाती है
इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने भैया अंशुल भैया हिमांशु आदि का नाम क्यों लिया जानने के लिये सुनें