31.5.22

आचार्य श्री ओम शंकर जी का दिनांक 31 मई 2022 का सदाचार संप्रेषण

 बड़े भाग  मानुष तनु पावा। सुर दुर्लभ सब ग्रंथन्हि गावा॥

साधन धाम मोच्छ कर द्वारा। पाइ न जेहिं परलोक सँवारा॥4॥


प्रस्तुत है ऋजुक आचार्य श्री ओम शंकर जी का आज दिनांक 31 मई 2022

  का  सदाचार संप्रेषण 




https://sadachar.yugbharti.in/


https://youtu.be/YzZRHAHbK1w


परमात्मा के निर्देश से जो प्रतिदिन का यह सदाचार रूपी प्रसाद हम लोगों को मिल रहा है इसका महत्त्व किसी भी तरह कम नहीं आंका जा सकता


इनका श्रवण मनन निदिध्यासन कर हम लोगों को अवर्णनीय लाभ हो रहा है


इनका जिन पर अनुकूल प्रभाव   पड़ रहा है  उनमें किसी को गीता में किसी को मानस में आनन्द मिल रहा है, लेकिन वे अपने सांसारिक कार्य व्यवहार से भी विरत नहीं हैं

 समस्याओं के आने पर व्याकुल नहीं हो रहे हैं


खोखले वाणी -व्यवहार के अभ्यासी लोगों से संपर्क रखें लेकिन न उनसे निर्देश प्राप्त करें न उनके प्रति ज्यादा संवेदनशील बनें न उनके प्रति चिन्तित हों

हम सबका उद्देश्य है चिन्तनशील होकर कर्मशीलता की ओर आगे  बढ़ना 


आत्मशक्ति   को आत्मभक्ति में बदलने का उद्देश्य अत्यन्त गम्भीर और महत्त्वपूर्ण है


त्यजेदेकं कुलस्यार्थे ग्रामस्यार्थे कुलं त्यजेत् ।

ग्रामं जनपदस्यार्थे आत्मार्थे पृथिवीं त्यजेत् ॥ – महाभारत, पर्व १, अध्याय १०७, श्लोक ३२


आत्म शरीर मन बुद्धि विचार नहीं है यह तत्त्व है यह परमात्म का अंश है

एक कवि की इस पंक्ति 

व्याकुल धरती आकाश हृदय के तार छू गये तारों से....

का उल्लेख करते हुए आचार्य जी ने बताया कि ये परमात्म के तार हैं निराशा हताशा के नहीं और यही अध्यात्म है


एक बार रघुनाथ बोलाए। गुर द्विज पुरबासी सब आए॥

बैठे गुर मुनि अरु द्विज सज्जन। बोले बचन भगत भव भंजन॥1॥


सुनहु सकल पुरजन मम बानी। कहउँ न कछु ममता उर आनी॥

नहिं अनीति नहिं कछु प्रभुताई। सुनहु करहु जो तुम्हहि सोहाई॥2॥


सोइ सेवक प्रियतम मम सोई। मम अनुसासन मानै जोई॥

जौं अनीति कछु भाषौं भाई। तौ मोहि बरजहु भय बिसराई॥3॥


मम कौन है  मम आत्मभक्ति है  हम सूर्यवंशी हैं हम दीपक सूर्य की तरह प्रकाश करते हैं हमारा प्रकाश सीमित है सूर्य का प्रकाश असीमित है लेकिन हमारा एक दूसरे से संबन्ध है


इस संबन्ध की अनुभूति उन्हीं को होगी जो चिन्तन मनन अध्ययन स्वाध्याय सत् संगति    करते हैं


व्यर्थ की चर्चाओं में समय बरबाद नहीं करना चाहिये


आज की स्थिति विषम है हम गृहस्थ हैं लेकिन आदर्श गृहस्थ नहीं

 है तो ये कलियुग ही

कलियुग से बाहर तो हम आ सकते नहीं

सूक्ष्म और कारण शरीर हमारे वश में नहीं है स्थूल शरीर वश में है

सूक्ष्म और कारण शरीर भी कष्ट न पायें इसके लिये हमें अध्यात्म की शरण में जाना चाहिये

गृहस्थ जीवन की लोलुपता से बाहर आयें शवासन ध्यान धारणा संयम प्राणायाम भजन आदि के माध्यम से अध्यात्म की ओर उन्मुख हों



इस समय परिस्थिति गम्भीर है अध्यात्म के साथ शौर्य भी आवश्यक है


शौर्यं तेजो धृतिर्दाक्ष्यं युद्धे चाप्यपलायनम्।


दानमीश्वरभावश्च क्षात्रं कर्म स्वभावजम्।।18.43।।


शौर्य, तेज, धृति,  दक्षता , युद्ध से पलायन न करना, दान और ईश्वर भाव  - ये सब क्षत्रिय के स्वाभाविक कर्म हैं


चिर विजय की कामना के लिये विश्वास रखें

वास्तविक इतिहास का अध्ययन करें 

यशस्विता के लिये संगठन के कार्यक्रम करते रहें


दूसरों के छिद्रान्वेषण के स्थान पर मैं स्वयं क्या कर सकता हूं इस पर अवश्य विचार करें