1.6.22

आचार्य श्री ओम शंकर जी का दिनांक 1 जून 2022 का सदाचार संप्रेषण

 कार्पण्यदोषोपहतस्वभावः


पृच्छामि त्वां धर्मसंमूढचेताः।


यच्छ्रेयः स्यान्निश्िचतं ब्रूहि तन्मे


शिष्यस्तेऽहं शाधि मां त्वां प्रपन्नम्।।2.7।।



प्रस्तुत है कर्मात्मन् आचार्य श्री ओम शंकर जी का आज दिनांक 1 जून 2022

  का  सदाचार संप्रेषण 




https://sadachar.yugbharti.in/


https://youtu.be/YzZRHAHbK1w


यदि हम अपने क्षेत्र के सिद्धहस्त कुशल सफल व्यक्ति हैं तो भी जीवन पर्यन्त हमें यह ध्यान रखना चाहिये कि हमारी सफलता, कौशल, ज्ञान,साधना आदि भारत मां को समर्पित है हम अपने गृहस्थ जीवन का पालन करते हुए सिद्धान्त और व्यवहार को न छोड़ते हुए अपने सुप्त भावों को सुप्त शक्ति को और सुप्त तत्त्व को जाग्रत करते रहें 

क्योंकि हम समाज सेवा के लिये उद्यत हुए हैं ('राष्ट्र -निष्ठा से परिपूर्ण समाजोन्मुखी व्यक्तित्व का उत्कर्ष ' यह हमारा लक्ष्य है ) तो जो भी इससे संबन्धित सूचना हमें मिले उसमें हमें प्रयास करना चाहिये समाज के प्रति उपेक्षा का भाव हानिकारक है


जब मनुष्य एक  उदाहरण बन जाता है महापुरुषत्व को प्राप्त कर लेता है तो बहुत सी बातें उसके साथ संयुत हो जाती हैं


ऐसा ही हिन्दुत्व पुरोधा अजातशत्रु जन्मतः महापुरुष आदरणीय अशोक सिंघल जी(15 सितम्बर 1926-17 नवम्बर 2015)के साथ भी था

उनका जीवन अत्यधिक पवित्र था शौर्यमय था वाणी ऐसी कि लगता था सिंह गर्जना है



उनका स्वर कार्यव्यवहार उत्साह देखते ही बनता था



अपने  90 वें जन्मदिन के  कार्यक्रम में अशोक सिंघल जी 


जिसका स्वर संगीत सदा ही शौर्य शक्ति से झंकृत था ,

जिस स्वर का आलाप दिव्य भावों से सहज अलंकृत था,



 ने अपनी बुलन्द आवाज  में एक गीत ‘यह मातृभूमि मेरी, यह पितृभूमि मेरी..’ गाया था


अर्जुन की जिज्ञासा


संन्यासस्य महाबाहो तत्त्वमिच्छामि वेदितुम्।


त्यागस्य च हृषीकेश पृथक्केशिनिषूदन।।18.1।।


का उत्तर देते हुए भगवान् श्रीकृष्ण कहते हैं


यज्ञदानतपःकर्म न त्याज्यं कार्यमेव तत्।


यज्ञो दानं तपश्चैव पावनानि मनीषिणाम्।।18.5।।


यज्ञ दान और तप का त्याग नहीं करना चाहिये

यज्ञ केवल हवनकुंड बनाकर स्वाहा स्वाहा करना ही नहीं है यज्ञ एक भाव है

राष्ट्राय स्वाहा, इदं राष्ट्राय इदं न मम”


त्वदीयं वस्तु गोविन्द तुभ्यमेव समर्पये ।

गृहाण सम्मुखो भूत्वा प्रसीद परमेश्वर ।।


रामकृष्ण परमहंस ने प्रस्तर की मूर्ति में दर्शन किये थे

लेकिन सब तो नहीं कर सकते प्रयास किया जा सकता है हर काम में हाथ नहीं डालना चाहिये कोई किसी काम में कुशल है कोई किसी में


हमें महापुरुषों ज्ञानियों आदि से यही शिक्षा लेनी चाहिये कि जो हमारी शक्ति शौर्य वैभव है सब भारत माता के लिये है



व्यक्ति के पीछे न चलें सिद्धान्त के पीछे चलें व्यक्ति में विकार हो सकते हैं समीक्षात्मक बुद्धि को जाग्रत करें आत्म समीक्षा अवश्य करें 

इसके अतिरिक्त भैया अमित गुप्त भैया विनय वर्मा भैया अनुभव भैया विजय मित्तल जी भैया मनीष कृष्णा का नाम आचार्य जी ने क्यों लिया आदि जानने के लिये सुनें