5.5.22

आचार्य श्री ओम शंकर जी का दिनांक 5 मई 2022 का सदाचार संप्रेषण

 पाप उलूक निकर सुखकारी। नारि निबिड़ रजनी अँधियारी॥

बुधि बल सील सत्य सब मीना। बनसी सम त्रिय कहहिं प्रबीना॥

प्रस्तुत है गीष्पति आचार्य श्री ओम शंकर जी का आज दिनांक 5 मई 2022

  का  सदाचार संप्रेषण 




https://sadachar.yugbharti.in/


https://youtu.be/YzZRHAHbK1w


जब हमारे सामने आपद्धर्म (इस पर छान्दोग्योपनिषद् में उषस्ति की एक अत्यधिक रोचक कथा है ) आता है तो व्यवस्थित दिनचर्या अव्यवस्थित हो जाती है


हम लोग अत्यन्त सौभाग्यशाली हैं कि आपद्धर्म के संकट में घिरे होने के बाद भी आचार्य जी हम लोगों को इस सदाचार संप्रेषण के माध्यम से प्रेरित कर रहे हैं


मनुष्य का मन बहुत चञ्चल होता है लेकिन चंचलता उसका दोष ही नहीं सद्गुण भी है जब चञ्चल मन शान्ति की सरणियों में पहुंच जाता है  तो वह शान्ति की अनुभूति कराने लगता है यह प्रतिदिन का संप्रेषण  चंचल मन का सात्विक भावबोध है


आचार्य जी ने परसों अरण्य कांड में भगवान् राम के स्वरूप को वर्णित करते छंदों के बारे में हमें बताया था अरण्य कांड में अनेक प्रसंग हैं इन्द्रपुत्र जयन्त का प्रसंग,सीता हरण का प्रसंग, जटायु प्रसंग और इनके साथ नारद भगवान् राम के संवाद का भी प्रसंग है


कभी नारद विष्णु भगवान्   से रूप मांगने गये थे वो नारद मोह कहा जाता है इस अरण्य कांड में नारद ज्ञान कहा जाता है

प्रभु राम इस समय कुछ शांत बैठे हैं


बिकसे सरसिज नाना रंगा। मधुर मुखर गुंजत बहु भृंगा॥

बोलत जलकुक्कुट कलहंसा। प्रभु बिलोकि जनु करत प्रसंसा॥1॥


देखि राम अति रुचिर तलावा। मज्जनु कीन्ह परम सुख पावा॥

देखी सुंदर तरुबर छाया। बैठे अनुज सहित रघुराया॥1॥


तहँ पुनि सकल देव मुनि आए। अस्तुति करि निज धाम सिधाए॥

बैठे परम प्रसन्न कृपाला। कहत अनुज सन कथा रसाला॥2॥


बिरहवंत भगवंतहि देखी। नारद मन भा सोच बिसेषी॥

मोर साप करि अंगीकारा। सहत राम नाना दुख भारा॥3॥

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काम क्रोध लोभादि मद प्रबल मोह कै धारि।

तिन्ह महँ अति दारुन दुखद मायारूपी नारि॥43॥


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आदि का उल्लेख करते हुए आचार्य जी ने बताया नारी विमर्श  सशक्तिकरण जाति पाति का भेद आदि बहुत से विकार इस समय आ गये हैं

आत्मीय संबंधों की जगह विश्लेषणात्मक संबन्धों ने ले ली है पाश्चात्य विश्लेषणात्मक प्रवृत्ति अत्यधिक घातक है


इस पर विमर्श होना चाहिये प्रश्न होने चाहिये नाटक में एकरसता बहुत खलती है इसी तरह सृष्टि में भी

मनुष्य जीवन में पुरुषत्व भी है नारीत्व भी है


पुरुष और प्रकृति के संपर्क से सृष्टि की रचना होती है

स्त्री और पुरुष दोनों ही महत्त्वपूर्ण हैं