महामृत्युंजय मंत्र
||ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम्। उर्वारुकमिव बन्धनान्मृत्योर्मुक्षीय माऽमृतात्॥
प्रस्तुत है विवेकदृश्वन् आचार्य श्री ओम शंकर जी का आज दिनांक 7 मई 2022
का सदाचार संप्रेषण
https://sadachar.yugbharti.in/
https://youtu.be/YzZRHAHbK1w
हम जब भी कोई कार्य करें तो सबसे पहले अपने इष्टदेव का स्मरण अवश्य करें इन सदाचार संप्रेषणों का उद्देश्य ही है कि हमें इनसे वैचारिक बल मिले वैचारिक बल तभी सुरक्षित रहता है जब शारीरिक बल सहज रहता है शारीरिक स्वस्थता की ओर लगातार सचेष्ट रहने की आवश्यकता है जीवनचर्या भी महत्त्वपूर्ण है उस बल का सदुपयोग स्वयं करें और स्वयं जैसे समाज की निर्मिति के लिये करें
यह क्रिया संस्कार है संस्कार लगातार चलते हैं विकार सहज रूप से आ जाते हैं
इन विकारों को दूर करने का सतत् प्रयास करते रहना चाहिये अच्छे सात्विक बीजों को विचार के रूप में पल्लवित करने की कोशिश करते रहना ही संसार का कर्तव्य पालन है
कार्य सामान्य हो असामान्य हो व्यवहार साधारण हो असाधारण हो सबके प्रति लगातार सचेत रहने की क्रिया जिन लोगों के मन मस्तिष्क में छाई रहती है ऐसे लोग अपने को संसार सागर से बचा लेते हैं
शरीर को स्वस्थ करके आराम देना भी गलत है
सबसे बड़ा भय मृत्यु से होता है लेकिन हमें शरीर बदलने में भी कष्ट नहीं होना चाहिये जैसे पका हुआ खरबूजा लता से संबंध को त्याग देता है
मानस में भी इसी प्रकार की शिक्षा हम लोगों को दी गई है
अरण्य कांड में
अबिरल भगति मागि बर गीध गयउ हरिधाम।
तेहि की क्रिया जथोचित निज कर कीन्ही राम॥32॥
अखण्ड भक्ति का वर माँगकर जटायु परमधाम को चले गये । भगवान् राम ने उनकी क्रियाएँ यथायोग्य अपने हाथों से कीं॥32॥
संकुल लता बिटप घन कानन। बहु खग मृग तहँ गज पंचानन॥
आवत पंथ कबंध निपाता। तेहिं सब कही साप कै बाता॥3॥
दुरबासा मोहि दीन्ही सापा। प्रभु पद पेखि मिटा सो पापा॥
सुनु गंधर्ब कहउँ मैं तोही। मोहि न सोहाइ ब्रह्मकुल द्रोही॥4॥
मन क्रम बचन कपट तजि जो कर भूसुर सेव।
मोहि समेत बिरंचि सिव बस ताकें सब देव॥33॥
.....
मानस और गीता के नित्य पाठ से हमारी ज्ञान की परतें खुलती जायेंगी और हम व्याकुल नहीं होंगे
इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने विप्रत्व और शूद्र का क्या अर्थ बताया भैया विधुकांत जी भैया मोहन कृष्ण जी और भैया प्रवीण सारस्वत जी का नाम क्यों लिया जानने के लिये सुनें