सितासिते सरिते यत्र सङ्गते तत्राप्लुतासो दिवमुत्पतन्ति ।
ये वै तन्वं विसृजन्ति धीरास्ते जनासो अमृतत्वं भजन्ते ।।
– ऋग्वेद
(जहां गंगा - यमुना दोनों नदियां एक होती हैं अर्थात् संगम वहां स्नान करने वालों को स्वर्ग मिलता है एवं जो धीर पुरुष इस संगम में तनुत्याग करते हैं, उन्हें मोक्ष की प्राप्ति होती है।)
प्रस्तुत है स्तोतव्य आचार्य श्री ओम शंकर जी का आज दिनांक 2 जून 2022
का सदाचार संप्रेषण
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https://youtu.be/YzZRHAHbK1w
निम्नांकित छंदों से आचार्य जी ज्ञान का महत्त्व बता रहे हैं
न हि ज्ञानेन सदृशं पवित्रमिह विद्यते।
तत्स्वयं योगसंसिद्धः कालेनात्मनि विन्दति।।4.38।।
श्रद्धावान् लभते ज्ञानं तत्परः संयतेन्द्रियः।
ज्ञानं लब्ध्वा परां शान्तिमचिरेणाधिगच्छति।।4.39।।
इस संसार में ज्ञान के बराबर परिशुद्ध और उदात्त निःसन्देह कुछ भी नहीं है। जिसका योग भली-भाँति सिद्ध हो गया है, वह उस तत्त्व को अवश्य ही स्वयं अपने आप में पा लेता है।
श्रद्धावान्, ज्ञान में तत्पर और जितेन्द्रिय पुरुष श्रद्धासमन्वित ज्ञान प्राप्त कर शान्ति को प्राप्त होता है
हमारे कथामय साहित्य में बाल्यावस्था से वृद्धावस्था तक के मनुष्य में आकर्षण पैदा करने की क्षमता है लेकिन वर्तमान समय की आपाधापी में ये कथामय साहित्य लुप्तप्राय है मंचों से होने वाली कथाओं में श्रद्धा कम और लोभ ज्यादा है यद्यपि एक से बढ़कर एक कुशल और ज्ञानी कथावाचक होते हैं
आचार्य जी ने एक कथा सुनाई जिसमें शिव जी पार्वती जी से कहते हैं कि गंगा में स्नान श्रद्धासमन्वित न होने के कारण इन मनुष्यों को पुनः दुःख और व्याधियां सताती हैं मात्र डुबकी लगाना ही स्नान नहीं है
कथा बहुत रोचक है गड्ढे में गिरे अत्यन्त वृद्ध व्यक्ति के रूप में शिव जी को उत्साहित नौजवान बाहर निकाल देता है उसे यह डर नहीं था कि भस्म हो जायेगा गंगा में स्नान करने के कारण उसे विश्वास था कि उसके सारे पाप धुल गये थे
यह अलमस्ती श्रद्धा विश्वास से आती है
हमारे देश की पवित्रता का वर्णन कैसे किया जा सकता है जहां गङ्गा जैसी पवित्र नदी हो
गंगाजल वर्षों तक रखने के बाद भी खराब नहीं होता है
भक्ति का भाव केवल दुःख में नहीं सुख में भी होना चाहिये
ऐसे पवित्र देश के व्यक्ति में बेचारगी नहीं होनी चाहिये
ज्ञान भक्ति और वैराग्य का गीता में बहुत सुन्दर वर्णन है
भागवत सम्राट श्री रामचन्द्र केशव डोंगरे जी महाराज कहते थे
ज्ञानी होना कठिन नहीं है प्रभु का प्रेमी होना कठिन है भक्ति के बिना ज्ञान लंगड़ा है ज्ञान वैराग्य के बिना भक्ति अन्धी है ज्ञान का अनुभव वैराग्य और भक्ति के बिना होता नहीं है
स्थान परिस्थिति व्यक्ति के संयोजन से आनन्द की प्राप्ति होती है
पवित्र विद्यालय के पठन पाठन और कोचिंग केंद्र में आचार्य जी ने क्या अंतर बताया जानने के लिये सुनें