10.6.22

आचार्य श्री ओम शंकर जी का दिनांक 10 जून 2022 का सदाचार संप्रेषण

 यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत।


अभ्युत्थानमधर्मस्य तदाऽऽत्मानं सृजाम्यहम्।।4.7।।


परित्राणाय साधूनां विनाशाय च दुष्कृताम्।


धर्मसंस्थापनार्थाय संभवामि युगे युगे।।4.8।।



प्रस्तुत है सूरचक्षुस् आचार्य श्री ओम शंकर जी का आज दिनांक 10 जून 2022

  का  सदाचार संप्रेषण 




https://sadachar.yugbharti.in/


https://youtu.be/YzZRHAHbK1w



समय जब गम्भीर हो तो हमें बहुत सचेत सतर्क रहने की आवश्यकता है

वर्तमान समय भी बहुत उथलपुथल वाला  विपरीत  और गम्भीर है इस समय हम सचेत सतर्क तो रहें हम शक्तिसंपन्न भी हैं यह अनुभूति भी करते रहें


कवन सो काज कठिन जग माहीं। जो नहिं होइ तात तुम्ह पाहीं॥


राम काज लगि तव अवतारा। सुनतहिं भयउ पर्बताकारा॥




 निराशा को पास फटकने न दें

हम अकेले नहीं हैं चिरविजय की कामना लिये आगे चलते रहते हैं अधर्म का भारत में ही पराभव होगा ऐसा विश्वास प्रत्येक राष्ट्रभक्त में होना चाहिये


गायन्ति देवा: किल गीतकानि धन्यास्तु ते भारतभूमिभागे

स्वापवर्गास्पदमार्गभूते भवन्ति भूयः पुरुषाः सुरत्वात् ॥

का,अपनी संस्कृति का चिन्तन करते हुए अपने व्यवहार को करने की आवश्यकता है


विद्या विवादाय धनं मदाय,

शक्ति: परेषां परपीडनाय ।

खलस्य साधो: विपरीतमेतद्,

ज्ञानाय दानाय च रक्षणाय ।।

की व्याख्या करते हुए आचार्य जी ने बताया कि दुष्ट लोगों की विद्या विवाद के लिये धन मद के लिये और शक्ति दूसरों के परेशान करने के लिये होती है और इसके विपरीत हम लोगों का उद्देश्य दूसरा होता है 




शारीरिक पारिवारिक सामाजिक कार्यों में संतुलन स्थापित कर हमें अपने कदम आगे  बढ़ाने चाहिये