12.6.22

आचार्य श्री ओम शंकर जी का दिनांक 12 जून 2022 का सदाचार संप्रेषण

 एवं बुद्धेः परं बुद्ध्वा संस्तभ्यात्मानमात्मना।


जहि शत्रुं महाबाहो कामरूपं दुरासदम्।।3.43।।



प्रस्तुत है सुदेशिक आचार्य श्री ओम शंकर जी का आज दिनांक 12 जून 2022

  का  सदाचार संप्रेषण 




https://sadachar.yugbharti.in/


https://youtu.be/YzZRHAHbK1w


हम इस संसार में आयें हैं तो कर्म से विहीन नहीं रह सकते

गुणों के आधार पर कर्म तीन प्रकार के हैं  सतोगुणी, रजोगुणी और तमोगुणी

कर्म के स्थूल और सूक्ष्म दोनों रूप होते हैं

कल्पनाओं में भी हम कर्म करते रहते हैं

अपने आत्म से संसारत्व को संयुत करने वाला मनुष्य इस कर्म की प्रवृत्ति को साथ लेकर आता है

कर्म जब विकृत स्वरूप धारण करता है तो उससे कुंठित हुआ मन संवेदनशीलता त्याग देता है


पतित मनुष्य पशु से भी नीचे गिर जाता है और उत्थित मनुष्य देवताओं से ऊपर होकर परमात्मा के निकट पहुंच जाता है


 

गीता के तीसरे अध्याय में 36 से 41 छन्द 


अथ केन प्रयुक्तोऽयं पापं चरति पूरुषः।


अनिच्छन्नपि वार्ष्णेय बलादिव नियोजितः।।3.36।।



तस्मात्त्वमिन्द्रियाण्यादौ नियम्य भरतर्षभ।


पाप्मानं प्रजहि ह्येनं ज्ञानविज्ञाननाशनम्।।3.41।।


में अर्जुन की जिज्ञासाओं का भगवान् शमन करते हैं


आत्म सर्वश्रेष्ठ है लेकिन आत्म तक पहुंचना ही दुष्कर है और यही अध्यात्म है आत्म परमात्म का अंश है यह अनुभूति जितने समय तक रहती है हम आनन्दार्णव में तैरते रहते हैं


मनुष्य मत्स्य,गौ,अश्व, मनुष्य, देवता आदि तो बनता ही है वह परमात्मा भी बन जाता है ऐसे मनुष्य के अन्दर ही गुण हैं मनुष्य द्वारा किसी भी भौतिक वस्तु का निर्माण यदि अध्यात्म समर्पित हो जाता है

तो वह स्वयं तो आनन्दित होता है दूसरों को भी आनन्दित करता है


संजय द्वारा युद्ध का वर्णन, पुष्पक विमान का उल्लेख आदि उदाहरण इतना बताने के लिये पर्याप्त हैं कि हम विज्ञान में कितने उन्नत थे और उसका कारण अध्यात्म का उत्कृष्ट स्वरूप हमसे संयुत था 


हमें शक्ति चैतन्य उत्साह उमंग अपराजेय शक्ति मिले इसके लिये हमको अध्यात्म की ओर उन्मुख होना ही चाहिये

रामत्व हनुमान जी का सेवा भाव कृष्ण का कौशल आदि यदि हम अपने अन्दर प्रवेश करायेंगे तो आज की विकट समस्याओं को पाकर निराश नहीं होंगे

अपने उत्तरदायित्वों का निर्वाह करते हुए आंखें खोलकर दिमाग को सक्रिय करके संतुलित लोगों के साथ नित्य संपर्क करके वर्तमान परिस्थितियों पर हमें काबू पाना है

इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने भैया समीर राय का नाम क्यों लिया दीनदयाल विद्यालय के किस विशेष रूप के कारण आज भी हम उस विद्यालय से आचार्यों से छोटे बड़े भाइयों से जुड़े हैं आदि जानने के लिये सुनें