13.6.22

आचार्य श्री ओम शंकर जी का दिनांक 13 जून 2022 का सदाचार संप्रेषण

 समर सदैव जय विजय 

विजय विजय विजय विजय 

कभी न मृत्यु-कामना

न दीनहीन भावना 

न शत्रु को महत्व दो 

सुबंधु पर ममत्व हो 

करो कभी न याचना

सुताल ताण्ड्य बाँचना

विजय विजय विजय विजय। ।


प्रस्तुत है कृतनिश्चय आचार्य श्री ओम शंकर जी का आज दिनांक 13 जून 2022

  का  सदाचार संप्रेषण 




https://sadachar.yugbharti.in/


https://youtu.be/YzZRHAHbK1w


हमारे अंदर यह कौशल होना चाहिये कि सामान्य बातों में भी हम असामान्यता खोज लें



मन एव मनुष्याणां कारणं बन्धमोक्षयोः । बन्धाय विषयासक्तं मुक्त्यै निर्विषयं स्मृतम् ॥


लेकिन व्यक्तिगत पारिवारिक सामाजिक आदि परिस्थितियों में उलझकर मन अशान्त हो जाता है


हमें अपने मन को मननशील बनाना चाहिये  मनन आत्म, परमात्म,परमात्म की लीला रचना,सांसारिक समस्याओं के समाधान हेतु उपाय खोजने और यशस्विता के साथ मनुष्यत्व के निर्वाह हेतु होना चाहिये


स जीवति यशो यस्य कीर्तिर्यस्य स जीवति।

अयशोऽकीर्तिसंयुक्तः जीवन्नपि मृतोपमः॥


हमारे ऋषियों मुनियों द्वारा दिये गये इन सूत्र सिद्धान्तों पर हमें दृढ़ रहने की आवश्यकता है


घोर संकट के इस काल में अभिभावकवृत्ति का निर्वाह करते हुए आचार्य जी हम लोगों के क्रियाकलाप आदि की जानकारी प्राप्त करते रहते हैं

वैसे भी आचार्य जी ग्रीफ काउंसलर की भूमिका में  आते रहते हैं

आचार्य जी इस बात का भी प्रयास करते हैं कि हमारे विचार कमजोर न पड़ें

और हमारा आत्मबोध जाग्रत हो

इस भाव के कारण हमें संघर्ष में भी विजय प्राप्त होती है


व्याकुलता से सहज शक्ति शिथिल  पड़ जाती है 

शरीर को साधन मानते हुए अपने शरीर की सुरक्षा भी हम करें यद्यपि हमें यह तत्त्वबोध तो हो कि इस शरीर की एक आयु है


शरीरमाद्यं खलु धर्म साधनम्


हमारा शरीर चला भी जाये तो दूसरा शरीर मिलने का उपाय करें


संसार में हैं तो समस्याएं होंगी   संघर्ष होंगे अपने परायों का जंजाल दिखेगा इनका एक मात्र उपाय है मनुष्यत्व की उपासना


इसके लिये हमारा पुरुषत्व जाग्रत होना चाहिये



अध्यात्म का मूल तत्त्व यही है कि किसी भी परिस्थिति में हम आनन्दित रहें


ध्यान, प्राणायाम, सात्विक भोजन, स्वाध्याय, अध्ययन, चिन्तन, मनन आवश्यक है

सहजं कर्म कौन्तेय सदोषमपि न त्यजेत्।


सर्वारम्भा हि दोषेण धूमेनाग्निरिवावृताः।।18.48।।


असक्तबुद्धिः सर्वत्र जितात्मा विगतस्पृहः।


नैष्कर्म्यसिद्धिं परमां संन्यासेनाधिगच्छति।।18.49।।


आचार्य जी कामना करते हैं कि हम सफलता पूर्वक जीवन जियें और  एक आदर्श प्रस्तुत करें


इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने सम्राट पृथ्वीराज फिल्म की चर्चा क्यों की भैया पवन जी और भैया प्रकाश जी का नाम किस संदर्भ में आया जानने के लिये सुनें