प्रस्तुत है सेश्वर आचार्य श्री ओम शंकर जी का आज दिनांक 3 जून 2022
का सदाचार संप्रेषण
https://sadachar.yugbharti.in/
https://youtu.be/YzZRHAHbK1w
अनादिकाल से भारतीय संस्कृति और हिन्दू समाज की एक अद्वितीय विशेषता है कि प्रेमाप्लवित होने में किंचित् भी विलम्ब नहीं करता
संवेदनशीलता के साथ संबन्धों का निर्वहन उसे बखूबी आता है
विन्दु सिन्धुमय होने का भाव बहुत व्यापक है
किसी कारण उसे आवेश भी आता है तो आवेश के पश्चात् सम्बन्ध पुनः महत्त्वपूर्ण हो जाते हैं
महाभारत में युद्ध के पश्चात् तर्पण अन्त्येष्टिकर्म आदि के समय यह नहीं देखा गया कि यह शत्रुपक्ष का है या अपना है
महाभारत में बहुत मार्मिक दृश्य हैं हमारे चरित्रों को उजागर करने वाला हमारे साहित्य का कथात्मक संसार बहुत प्रेरणादायक है
भारतीय कर्मसिद्धान्त संयम श्रद्धा साधना और संकल्प को साथ लेकर चलता है जिसमें संयमित होकर श्रद्धास्पद वस्तुओं पर साधनामय पूर्ण विश्वास करना और आजीवन संकल्पबद्ध होना सुस्पष्ट लक्ष्य है
राम कृष्ण और शिव हमारे आदर्श हैं श्री राम मर्यादामय शौर्य हैं श्रीकृष्ण सामञ्जस्यपूर्ण शौर्य हैं शिव साधना से सिद्धि तक एक व्यवस्था हैं जिनके लिये
तांडव भी आवश्यक है
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ, आर्यसमाज, रामकृष्ण मिशन के सिद्धान्तों की तरह युगभारती के भी सिद्धान्त हैं
स्वयं भी हम किसी से भयभीत न हों और न ही किसी को भयभीत करें
लेकिन अन्याय अनीति राक्षसत्व को भस्मीभूत करना भारतवर्ष का संयमयुक्त संकल्प भी है विलायती लोगों ने शिक्षा पद्धति बदलकर शौर्य शक्ति संयम साधना वाले हमारे मूल भाव को समाप्त कर दिया
नौकरी के प्रति पहले हमारा कभी आकर्षण नहीं था
नौकरी में हमारे ऊपर किसी का अनुशासन लद जाता है मनोविकार बढ़ जाते हैं सद् विचार कम होते जाते हैं
कर्मशीलता से विमुखता इस शिक्षापद्धति का दोष है
क्या नौकरी के प्रति ललक होनी चाहिये
यह विचारणीय है
कर्म का भोग भोग का कर्म जड़ का चेतन आनंद है हमारा जड़त्व जब चैतन्य में प्रवेश करता है तो कर्माधारित हो जाता है कर्म है तो उसके परिणाम हैं
संगठित होना संकल्पित होना श्रद्धावान होना साधनामय जीवन जीना दुष्टों को पराजित करना आवश्यक है यदि हम चाहते हैं कि संपूर्ण विश्व आर्यमय होवे
इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने रिंकू राही रजत शर्मा ज्ञानव्यापी आदि का नाम क्यों लिया परसों आचार्य जी कहां जा रहे हैं आदि जानने के लिये सुनें