21.6.22

आचार्य श्री ओम शंकर जी का दिनांक 21 जून 2022 का सदाचार संप्रेषण

 कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन।


मा कर्मफलहेतुर्भूर्मा ते सङ्गोऽस्त्वकर्मणि।।2.47।।



प्रस्तुत है तपोनिधि आचार्य श्री ओम शंकर जी का आज दिनांक 21 जून 2022

  का  सदाचार संप्रेषण 



 

https://sadachar.yugbharti.in/


https://youtu.be/YzZRHAHbK1w


आज योग दिवस है

पहला अंतरराष्ट्रीय योग दिवस 21 जून 2015 को पूरे विश्व में धूमधाम से मनाया गया। योग शब्द की उत्पत्त‍ि  युज् से हुई है, जिसका अर्थ है आत्मा का सार्वभौमिक चेतना से मिलन।


योग मन, शरीर और आत्मा की एकता को सक्षम बनाता है। योग के विभिन्न रूपों से हमारे शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य को अलग-अलग तरीकों से लाभ मिलता है।


हमारे यहां कहते हैं

योगश्चित्तवृत्तिनिरोधः।

 अर्थात् चित्तवृत्तियों का निरोध योग है।  मन सदैव दौड़ता है, कभी सांसारिक पदार्थों में, कभी चित्त में पड़ी  वासनाओं, इच्छाओं और विकारों में। मन की इसी हलचल को वृत्ति कहते हैं


योग साधना प्रारम्भ से ही ब्रह्मचर्य अवस्था से सिखाई जाती है 

भारतवर्ष के संस्कार अद्भुत रहे हैं


प्रातकाल उठि कै रघुनाथा। मातु पिता गुरु नावहिं माथा॥

आयसु मागि करहिं पुर काजा। देखि चरित हरषइ मन राजा ll


भगवान् प्रातःकाल उठकर माता,पिता एवं गुरु को मस्तक नवाते हैं और आज्ञा लेकर नगर का काम करते हैं। उनका चरित्र देख देखकर राजा मन में  खुश होते हैं।


और इन्हीं संस्कारों के कारण हम भी बड़ों से आशीर्वाद लेकर नया जीवन प्रारम्भ कर रहे हैं प्रतिदिन प्रातःकाल उठकर ऐसा भाव रखते हैं 


फिर शरीर की क्रियाएं प्रारम्भ होती हैं अपने विकार दूर करते हैं और फिर उपासना


उपासना से कुछ समय बाद यह लगेगा कि हम अपने पास ही बैठ रहे हैं भोजन भक्तिभाव से करना चाहिये क्योंकि अन्न ब्रह्म है


मैं भी ब्रह्म हूं

मनोबुद्धयहंकारचित्तानि नाहम् न च श्रोत्र जिह्वे न च घ्राण नेत्रे


न च व्योम भूमिर्न तेजॊ न वायु: चिदानन्द रूप: शिवोऽहम् शिवोऽहम् ॥1॥


ऋषियों ने एक व्यवस्था कर दी अर्थात् अष्टांग योग का जीवन में समावेश 



और हमारा जीवन कैसा हो


धृतिः क्षमा दमोऽस्तेयं शौचमिन्द्रियनिग्रहः ।

धीविद्या सत्यमक्रोधो दशकं धर्मलक्षणम् ॥


ये धर्म के दस लक्षण हैं

जीवन जीने की ऐसी व्यवस्था विश्व में अन्यत्र नहीं है


समस्याओं में व्याकुल न होना आदि योगी के लक्षण हैं आसनों का प्रदर्शन योगी का लक्षण नहीं है


योग हमारे अन्दर समाहित हो जाता है तो संसार में रहते हुए संसार की समस्याओं को हम अपने आप सुलझा लेते हैं


अन्यथा मनुष्य जीवन व्यर्थ हो जाता है मनुष्य जीवन बहुत रहस्यों से भरा है

सामान्य जीवन जीते हुए अपनी जीवनशैली सात्विकता संयम सदाचरण के साथ कर लें शक्तिसंपन्न हो जायें अध्यात्म को जानते हुए कर्मप्रवृत्त हो जायें तो इससे अच्छी बात और क्या हो सकती है


इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने सरौंहां के मदरसे के बारे में क्या बताया जानने के लिये सुनें