22.6.22

आचार्य श्री ओम शंकर जी का दिनांक 22 जून 2022 का सदाचार संप्रेषण

 प्रस्तुत है हृष्टवदन आचार्य श्री ओम शंकर जी का आज दिनांक 22 जून 2022

  का  सदाचार संप्रेषण 



 

https://sadachar.yugbharti.in/


https://youtu.be/YzZRHAHbK1w


एक लम्बे अर्से से इन सदाचार संप्रेषणों से हम लाभ प्राप्त करने का प्रयास रहे हैं इनके लिये आचार्य जी अपना बहुमूल्य समय देते हैं हमें इनका महत्त्व समझना चाहिये


वाणी विधान,प्राणिक ऊर्जा आदि आध्यात्मिक तात्त्विक बातें भारत वर्ष के ऋषियों की रहस्यात्मक खोजें हैं जिन्हें हमने परम्परागत ढंग से प्राप्त किया है


प्रातःकाल हमें आत्मस्थ होने का प्रयास करना ही चाहिये


यम ,  नियम ,  आसन ,  प्राणायाम ,  प्रत्याहार ,  धारणा ,  ध्यान   तथा   समाधि   अष्टांग   योग   के   आठ   योगांग   हैं।




आठो   अंगों  में   प्रथम   दो  यम - नियम   को   नैतिक   अनुशासन ,  आसन ,  प्राणायाम ,  प्रत्याहार   को   शारीरिक   अनुशासन   और   अंतिम   तीनों   अंगों धारणा ,  ध्यान ,  समाधि   को   मानसिक   अनुशासन   बताया   गया   है।


यम ,  नियम ,  आसन ,  प्राणायाम ,  प्रत्याहार ,  धारणा ,  ध्यान   तथा   समाधि   इन शब्दों को याद करना तो आसान है लेकिन एक एक शब्द बहुत महत्त्वपूर्ण है इन्हें अपने अन्दर प्रवेश कराना बहुत कठिन है  सत्यं वद वाला युधिष्ठिर का प्रसंग हम जानते हैं


याद करके कुछ बोल देना और अपने अंदर प्रविष्ट भावों की अभिव्यक्ति दोनों में अंतर है अपने अन्दर के भाव कितने गहन और गम्भीर हैं आत्मस्थ होने पर हमें पता चलता है


अहिंसा, सत्य, अस्तेय, ब्रह्मचर्य और अपरिग्रह ये पाँच यम हैं।

एक गाल पर कोई चांटा मारे तो दूसरा गाल भी सामने कर दें यह अहिंसा का विकृत रूप है

अहिंसा का अर्थ है किसी को सताना नहीं और न ही किसी के द्वारा सताया जाना


अपनी रक्षा करना हमारा धर्म है


शौच संतोष तप स्वाध्याय और ईश्वर- प्राणिधान


ये पांच नियम हैं


व्यक्ति के विकारों का पूजन भी मनुष्य का पतन है इसके लिये आचार्य जी ने मेहेर बाबा (मेरवान एस ईरानी )(जन्म 25-02-1894) जिनका हमीरपुर में मेहेर मंदिर है का उल्लेख किया


विलायती लोगों ने हमारे मन मानस को कितना बदल दिया कि अंग्रेजी हमें आकर्षित करने लगी अनिवार्य लगने लगी और हिन्दी से हम दूर होने लगे जब कि हिन्दी एक उच्च कोटि की समृद्ध भाषा है आचार्य जी ने इसके लिये नि उपसर्ग लगे बहुत से शब्द बताये

हमें अपनी भाषा के लिये जो अधोभाव पैदा कर दिया गया उसे उठाने की आवश्यकता है


क्या टीवी की जगह हम दूरदर्शन नहीं बोल सकते?



ऐसे अपघातों के बाद भी हमारी अक्षय संस्कृति समाप्त नहीं हो सकती

आचार्य जी की हमसे अपेक्षा है कि हम अपने संस्कारों को जाग्रत अवस्था में रखें जन्मदिन पर मोमबत्तियां तो न बुझाएं नकल करने से बचें

अपने तत्त्व विचार भक्ति शक्ति संयम स्वाध्याय राष्ट्र के प्रति निष्ठावान लोगों की नकल करें