23.6.22

आचार्य श्री ओम शंकर जी का दिनांक 23जून 2022 का सदाचार संप्रेषण

 आज ही के दिन सन् 1953 में डा श्यामा प्रसाद मुखर्जी की रहस्यमय परिस्थितियों में मृत्यु हो गई थी डा साहब ने ही सबसे पहले अनुच्छेद 370  के विरोध में आवाज उठाई थी उनका कहना था कि ‘एक देश में दो निशान दो विधान और दो प्रधान नहीं चल सकते’



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एक महीने से ज़्यादा कैद रखे गए मुखर्जी की सेहत लगातार बिगड़ रही थी उन्हें बुखार और पीठ में दर्द की शिकायतें बनी हुई थीं 19 व 20 जून की दरम्यानी रात उन्हें प्लूराइटिस होना पाया गया जो उन्हें 1937 और 1944 में भी हो चुका था डॉक्टर अली मोहम्मद ने उन्हें स्ट्रेप्टोमाइसिन का इंजेक्शन दिया था मुखर्जी ने डॉ. अली को बताया था कि उनके फैमिली डॉक्टर का कहना  था कि ये दवा उन्हें सूट नहीं करती थी  फिर भी अली ने उन्हें भरोसा दिलाकर ये इंजेक्शन दिया था


22 जून को मुखर्जी को सांस लेने में तकलीफ महूसस हुई अस्पताल में शिफ्ट करने पर हार्ट अटैक होना पाया गया राज्य सरकार ने घोषणा की कि 23 जून की अलसुबह 3:40 बजे दिल के दौरे से मुखर्जी का निधन हो गया अस्पताल में इलाज के दौरान एक ही नर्स मुखर्जी की देखभाल के लिए थीं राजदुलारी टिकू

 टिकू ने बाद में अपने बयान में कहा कि जब मुखर्जी पीड़ा में थे तब उसने डॉ. जगन्नाथ ज़ुत्शी को बुलाया था ज़ुत्शी ने नाज़ुक हालत देखते हुए डॉ. अली को बुलाया और कुछ देर बाद 2:25 बजे मुखर्जी चल बसे

(hindi.news18.com से साभार)



प्रस्तुत है विद आचार्य श्री ओम शंकर जी का आज दिनांक 23जून 2022

  का  सदाचार संप्रेषण 



 

https://sadachar.yugbharti.in/


https://youtu.be/YzZRHAHbK1w



महाभारत को यूं ही पंचम वेद नहीं कहा जाता

गणेश जी महाराज का लेखन और वेदव्यास जी का चिन्तन दर्शन अभिव्यक्ति अद्भुत है


हमारे यहां की त्रिकालदर्शी अद्भुत क्षमतासंपन्न ऋषि परम्परा का तप, त्याग, राष्ट्र -चिन्तन,भावी पीढ़ी को दिशा देने की दृष्टि अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है अवर्णनीय है

महाभारत में भारतवर्ष का इतिहास, दर्शन,जीवनशैली, कथा आदि बहुत कुछ है



महाभारत युद्ध का कारण बने दुर्योधन ने कह दिया


जानामि धर्मं न च मे 

प्रवृत्तिर्जानाम्यधर्मं न च मे निवृत्तिः।

केनापि देवेन हृदि स्थितेन यथा नियुक्तोऽस्मि तथा करोमि।। (गर्गसंहिता अश्वमेध0 50। 36)

जब कर्ण के पराभव से कौरव  खेमे में व्याकुलता छा गई और कृपाचार्य दुर्योधन के पास पहुंचे और बताया कि हम लोगों ने बहुत से लोगों को खो दिया है सत्रह दिन हो गये हैं अब संधि कर लो


दुर्योधन कहता है पांडव मुझे माफ नहीं करेंगे श्रीकृष्ण और अर्जुन दो शरीर और एक प्राण हैं


लेकिन संसार में कोई भी सुख लगातार रहने वाला नहीं है न राष्ट्र रहते हैं न यश

यहां कीर्ति का ही उपार्जन करना चाहिये और कीर्ति के लिये युद्ध अनिवार्य है



 (सेना को नौकरी के हिसाब से देखने वालों के लिये यह बहुत महत्त्वपूर्ण बात है)


मित्रों भाइयों दादाओं को मरवाकर यदि मैं प्राणों की रक्षा करूंगा तो सारा संसार निन्दा करेगा


आचार्य जी ने इस प्रसंग का उल्लेख अग्निपथ पर चल रही बहस के कारण किया है


देश का सैन्यीकरण अब बहुत जरूरी है

आचार्य जी ने संस्कृति और सभ्यता में क्या अन्तर बताया

अवभृत स्नान क्या होता है

भैया मनीष कृष्णा जी से आचार्य जी ने कल क्या कहा आदि जानने के लिये सुनें