24.6.22

आचार्य श्री ओम शंकर जी का दिनांक 24 जून 2022 का सदाचार संप्रेषण

 प्रस्तुत है आध्यापक आचार्य श्री ओम शंकर जी का आज दिनांक 24 जून 2022

  का  सदाचार संप्रेषण 



 

https://sadachar.yugbharti.in/


https://youtu.be/YzZRHAHbK1w



इन सदाचार संप्रेषणों में जीवन के उच्च विचार, तात्त्विक विषय, महत्त्वपूर्ण कथानक,भारतीय संस्कृति /सभ्यता/परम्परा /परिवेश का वर्णन करते हुए आचार्य जी प्रतिदिन हम लोगों का मार्गदर्शन करते हैं


हम लोगों को इनका लाभ भी मिलता है इसीलिये प्रतिदिन हम इनके लिये प्रतीक्षारत रहते हैं


आचार्य जी ने शरीरान्तरण को परिभाषित करते हुए बताया कि अनेक योगी महात्मा इस समय भी कायान्तरण की क्रिया संपादित कर लेते हैं


ऋषियों द्वारा खोजा गया यह मार्ग भारत की एक दिव्य उपलब्धि है


इस देश की अद्भुतता का अनुभव करने वाले भाव जगत में जाकर भारत की भक्ति करने लगते हैं


संपूर्ण भारत को महामूर्ति के समान देखने वाले देशभक्त उसकी सुरक्षा में अपने प्राणों को भी न्योछावर कर देते हैं


यही भाव उत्पन्न करने के लिये हमारे यहां संस्कार केन्द्र के रूप में विद्यालय पाठशालाएं बनाई जाती हैं


उनसे शिक्षित प्रशिक्षित नागरिक समाज में पहुंचकर कार्यों के चुनाव में भ्रमित नहीं होता था

उसे न भय रहता था न दुविधा


सारा समाज एक स्वरूप होकर उठता था जब इतने सारे लोग यशस्विता के दीपक को जलाते थे तो महाप्रकाश उत्पन्न होता था


इसी कारण सारे विश्व में भारत का डंका बजता था



बार बार के आघातों को झेलकर भारत फिर से उठकर  खड़ा हो जाता है


2014 के बाद पुनः स्थिति बदली है हमें अपने वास्तविक इतिहास और भूगोल की जानकारी हुई है


हर समय अज्ञानी स्वार्थी दुष्ट रहते रहे हैं आज भी हैं लेकिन उनसे टक्कर लेने के लिये नित्य हम लोग भी तैयार होते हैं


हमें अपनी परम्परा को जानना भी चाहिये और उस पर विश्वास भी करना चाहिये


कल आचार्य जी ने दुर्योधन का उल्लेख किया था हमें तो विकारों में भी विचार मिलते हैं


हमारा कर्तव्य है कि हम नई पीढ़ी को अपनी परम्परा अपनी संस्कृति के प्रति आश्वस्त करें


पूर्व और पश्चिम में अन्तर बताते हुए आचार्य जी ने कहा कि सांसारिकता में हम जितना उलझेंगे उतना परेशान होंगे इसलिये आत्मस्थ होने का प्रयास करें


सदाचार का मूलमन्त्र यही है कि हम आत्मचेतना की ओर उन्मुख हों आत्मचेतनयुक्त व्यक्ति संसार में किसी भी क्षेत्र में असफल नहीं होता

भक्ति किसे कहते हैं इसके लिये आचार्य जी ने


सघन चोर मग मुदित मन धनी गही ज्यों फेंट।

त्यों सुग्रीव बिभीषनहिं भई भरतकी भेंट।207।


राम सराहे भरत उठि मिले राम सम जानि।

तदपि बिभीषन कीसपति तुलसी गरत गलानि।।208।

का संकेत किया



भक्ति की शक्ति अद्वितीय है इससे संबद्ध कथानक बहुत बल देते हैं


इसका विस्तार आचार्य जी कल करेंगे